शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

भगवान कितने दयालु हैं कृष्ण अर्जुन संवाद सुंदर प्रसंग एक बार जरूर पढ़ें

भगवान रक्षा करते है पर कोई उनके श्री चरणों में भरोसा तो रखे।
चमत्कार उसी को दिखाई देंगे जिसका भरोसा बड़ा पक्का होगा, जिसकी आस्था में कमी नहीं होगी उसको चमत्कार दिखाई देंगे।

आपने शायद कभी सुना होगा यह प्रसंग

जब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ हो रहा था, इधर से पांड़वो की सेना तैयार थी उधर से कौरवो की सेना तैयार थी।
दोनों सेनाएं आपस में टकराने के लिए बिल्कुल तैयार थी तो उस समय युद्ध क्षेत्र बीच में एक चिड़िया के अंडे पड़े हुए थे।
उस चिड़िया ने अभी-अभी वो अंडे दिए थे और उसकी आँखों में आंसू थे, वो रो रही थी कि दोनों तरफ से सेनाएं आपस मे टकराएगी और मेरे ये बच्चे तो संसार में आने से पहले ही खत्म हो जाएंगे। उस चिडिया ने इस दुख की घडी मे भगवान से विनती की "हे ! प्रभु जिसकी कोई नहीं सुनता उसकी तो आप सुनते हो।"

"जब तुझसे ना सुलझे तेरे उलझे हुए धंधे
तो मेरे बांके बिहारी पे छोड़ दे बन्दे"
वो ही तेरी मुश्किल आसान करेंगे
और जो तू ना कर सका वो मेरे भगवान करेंगे।

उस छोटी सी चिड़िया ने भगवान से प्रार्थना की प्रभु अब तो आप ही कुछ कर सकते है और उसी समय युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोनों सेनाएं परस्पर टकराई, महा भयंकर युद्ध हुआ। बडे-बडे महारथी युद्ध मे मारे गये। चारो तरफ सैनिको के लाशो के ढेर थे। महाभारत युद्ध के उपरांत अर्जुन के रथ को लेकर श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र की भूमि से निकलकर जा रहे है, पांडव युद्ध जीत चुके है।
भगवान अर्जुन के रथ को लेकर जा रहे है तो नीचे भूमी पर एक रथ का घंटा पड़ा हुआ है। भगवान के हाथ में घोड़ो को हांकने वाला चाबुक है। भगवान ने उस पड़े हुए घंटे पे‌ जोर से चाबुक को मारा तो वो घंटा पलट गया और जैसे ही वो घंटा पलटा तो उसके अंदर से चिड़िया के नन्हे बच्चे फुदकते हुए बाहर निकले और उड़कर वहां से चले गए। यह सत्य घटना है, महाभारत में यह प्रसंग आया है। यह देखकर अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और अर्जुन भगवान से बोले "केशव ! यह मैं क्या देख रहा हूँ? इतना भीषण युद्ध जो ना पहले कभी हुआ और ना आगे शायद होगा। ऐसा ये भीषण महाभारत युद्ध जिसमे भीष्म पितामह, कर्ण और गुरु द्रौण, जैसे योद्धा नहीं बचे। जिस युद्ध में दुर्योधन जैसे बलशाली नहीं बचे। ऐसे भीषण संग्राम में इन चिड़िया के बच्चों की रक्षा किसने की ?"
तो भगवान मुस्कुराने लगे और बोले "अर्जुन ! अभी भी नहीं समझा ? अरे पगले जिसने तुझे बचाया है, उसने ही तो इनको बचाया है।

मधुर व्यवहार सुंदर प्रसंग एक बार जरुर पढ़ें


एक राजा था। उसने एक सपना देखा। सपने में उससे एक परोपकारी साधु कह रहे थे -- बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा और उसके काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुमसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है।
सुबह हुई। राजा सोकर उठा। और सपने की बात अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? इसे लेकर विचार करने लगा।

सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया।

शाम होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने की कोशिश न करें।

रात को सांप अपनी बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था।

इस तरह क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुंचाने की चेष्टा नहीं करते।

यह असाधारण सी लगने वाले दृश्य देखकर सांप के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था। कहां वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुंचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूं तो किस प्रकार काटूं? यह प्रश्न के चलते वह दुविधा में पड़ गया।

राजा के पलंग तक जाने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल गया। उधर समय से कुछ देर बाद सांप राजा के शयन कक्ष में पहुंचा। सांप ने राजा से कहा, राजन! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया।

अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूं। लो इसे अपने पास रखो। इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सांप चला गया।

यह केवल कहानी नहीं जीवन की सच्चाई है। अच्छा व्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल बनाने का माद्दा रखता है। यदि व्यक्ति व्यवहार कुशल है तो वो सब कुछ पा सकता है जो पाने की वो हार्दिक इच्छा रखता है।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

प्रभु कहते हैंThe lord says

        अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का
             तुरन्त जबाव दे देता हूँ
           तो मैं तुम्हारे विश्वास को
            और पक्का करता हूँ ।
                    💐💐
               अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना 
          का तुरन्त जबाव नहीं देता हूँ
               तो मैं तुम्हारे धैर्य की
                   परीक्षा लेता हूँ...
                      🌷🌷
           अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का
             बिल्कुल भी जवाब नही
                      देता हूँ तो.....
           मैने तुम्हारे लिये कुछ और
                 ही अच्छा सोच 
                      रखा है |
                      
 

"मनुष्य व्यर्थ में ही स्वयं को कर्ताJ समझकर अपने अहंकार में डूबा रहता हैं।" हनुमान जी का सुंदर प्रसंग जरूर पढ़ें

एक बार हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम से कहा कि अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध में भरकर तलवार लेकर सीता माँ को मारने के लिए दौड़ा, तब मुझे लगा कि इसकी तलवार छीन कर इसका सिर काट लेना चाहिये, किन्तु अगले ही क्षण मैंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया, यह देखकर मैं गदगद् हो गया !

ओह प्रभु! आपने कैसी शिक्षा दी, यदि मैं कूद पड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता तो क्या होता ?


बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मुझे भी लगता कि यदि मै न होता तो सीताजी को कौन बचाता ?


परन्तु आज आपने उन्हें बचाया ही नहीं बल्कि बचाने का काम रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब मै समझ गया कि आप जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं, किसी का कोई महत्व नहीं है !


आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बंदर आया हुआ है और वह लंका जलायेगा तो मै बड़ी चिंता मे पड़ गया कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नही है और त्रिजटा कह रही है तो मै क्या करुं ?
पर जब रावण के सैनिक तलवार लेकर मुझे मारने के लिये दौड़े तो मैंने अपने को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब विभीषण ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो मै समझ गया कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया !


आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नही जायेगा पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर घी डालकर आग लगाई जाये तो मैं गदगद् हो गया कि उस लंका वाली संत त्रिजटा की ही बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता और कहां आग ढूंढता, पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया, जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !


इसलिये हमेशा याद रखें कि संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है, हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं, इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि........

'मैं न होता तो क्या होता? और यदि में नही रहूंगा तो क्या होगा?'


"मनुष्य व्यर्थ में ही स्वयं को कर्ताJ समझकर अपने अहंकार में डूबा रहता हैं।"


।।जय श्री राम।। ☺🙏 गीता चौधरी

बुधवार, 7 फ़रवरी 2018

परम विद्वान लंकाधिपति रावण की महानता सुंदर प्रसंग जरूर पढ़ें


महापंडित लंकाधीश रावण रामेश्वरम में शिव लिंग की स्थापना के समय पुरोहित कैसे बना ।  बाल्मीकि रामायण और तुलसीकतृ रामायण में इस कथा का वर्णन नहीं है, पर तमिल भाषा में लिखी महर्षि कम्बन की 'इरामावतारम्' मे यह कथा है 
              रावण केवल शिव भक्त, विद्वान एवं वीर ही नहीं, अति-मानववादी भी था..। उसे भविष्य का पता था..। वह जानता था कि श्रीराम से जीत पाना उसके लिए असंभव था..। जामवंत जी को आचार्यत्व का निमंत्रण देने के लिए लंका भेजा गया..। जामवन्त जी दीर्घाकार थे, वे आकार में कुम्भकर्ण से तनिक ही छोटे थे । लंका में प्रहरी भी हाथ जोड़कर मार्ग दिखा रहे थे ।  इस प्रकार जामवन्त को किसी से कुछ पूछना नहीं पड़ा । स्वयं रावण को उन्हें राजद्वार पर अभिवादन का उपक्रम करते देख जामवन्त ने मुस्कराते हुए कहा कि मैं अभिनंदन का पात्र नहीं हूँ । मैं वनवासी राम का दूत बनकर आया हूँ । उन्होंने तुम्हें सादर प्रणाम कहा है । रावण ने सविनय कहा– आप हमारे पितामह के भाई हैं। इस नाते आप हमारे पूज्य हैं ।  आप कृपया आसन ग्रहण करें । यदि आप मेंरा निवेदन स्वीकार कर लेंगे, तभी संभवतः मैं भी आपका संदेश सावधानी से सुन सकूंगा ।
       जामवन्त ने कोई आपत्ति नहीं की । उन्होंने आसन ग्रहण किया । रावण ने भी अपना स्थान ग्रहण किया । तदुपरान्त जामवन्त ने पुनः सुनाया कि वनवासी राम ने सागर-सेतु निर्माण उपरांत अब यथाशीघ्र महेश्व-लिंग-विग्रह की स्थापना करना चाहते हैं । इस अनुष्ठान को सम्पन्न कराने के लिए उन्होने ब्राह्मण, वेदज्ञ और शैव रावण को आचर्य पद पर वरण करने की इच्छा प्रकट की है । मैं उनकी ओर से आपको आमंत्रित करने आया हूँ ।
        प्रणाम प्रतिक्रिया, अभिव्यक्ति उपरान्त रावण ने मुस्कान भरे स्वर में पूछ ही लिया कि क्या राम द्वारा महेश्व-लिंग-विग्रह स्थापना लंका-विजय की कामना से किया जा रहा है...?? बिल्कुल ठीक । श्रीराम की महेश्वर के चरणों में पूर्ण भक्ति है.  जीवन में प्रथम बार किसी ने रावण को ब्राह्मण माना है और आचार्य बनने योग्य जाना है । क्या रावण इतना अधिक मूर्ख कहलाना चाहेगा कि वह भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण और अपने आराध्य की स्थापना हेतु आचार्य पद अस्वीकार कर दिया । लेकिन हाँ । यह जाँच तो नितांत आवश्यक है ही कि जब वनवासी राम ने इतना बड़ा आचार्य पद पर पदस्थ होने हेतु आमंत्रित किया है तब वह भी यजमान पद हेतु उचित अधिकारी है भी अथवा नहीं । 
          जामवंत जी ! आप जानते ही हैं कि त्रिभुवन विजयी अपने इस शत्रु की लंकापुरी में आप पधारे हैं । यदि हम आपको यहाँ बंदी बना लें और आपको यहाँ से लौटने न दें तो आप क्या करेंगे..??
           जामवंत खुलकर हँसे । मुझे निरुद्ध करने की शक्ति समस्त लंका के दानवों के संयुक्त प्रयास में नहीं है, किन्तु मुझे किसी भी प्रकार की कोई विद्वत्ता प्रकट करने की न तो अनुमति है और न ही आवश्यकता । ध्यान रहे, मैं अभी एक ऐसे उपकरण के साथ यहां विद्यमान हूँ, जिसके माध्यम से धनुर्धारी लक्ष्मण यह दृश्यवार्ता स्पष्ट रूप से देख-सुन रहे हैं । जब मैं वहाँ से चलने लगा था तभी धनुर्वीर लक्ष्मण वीरासन में बैठे हुए हैं । उन्होंने आचमन करके अपने त्रोण से पाशुपतास्त्र निकाल कर संधान कर लिया है और मुझसे कहा है कि जामवन्त! रावण से कह देना कि यदि आप में से किसी ने भी मेरा विरोध प्रकट करने की चेष्टा की तो यह पाशुपतास्त्र समस्त दानव कुल के संहार का संकल्प लेकर तुरन्त छूट जाएगा । इस कारण भलाई इसी में है कि आप मुझे अविलम्ब वांछित प्रत्युत्तर के साथ सकुशल और आदर सहित धनुर्धर लक्ष्मण के दृष्टिपथ तक वापस पहुँचने की व्यवस्था करें ।*

          उपस्थित दानवगण भयभीत हो गए । लंकेश तक काँप उठे ।  पाशुपतास्त्र ! महेश्वर का यह अमोघ अस्त्र तो सृष्टि में एक साथ दो धनुर्धर प्रयोग ही नहीं कर सकते । अब भले ही वह रावण मेघनाथ के त्रोण में भी हो । जब लक्ष्मण ने उसे संधान स्थिति में ला ही दिया है, तब स्वयं भगवान शिव भी अब उसे उठा नहीं सकते । उसका तो कोई प्रतिकार है ही नहीं ।
        *रावण ने अपने आपको संभाल कर कहा – आप पधारें । यजमान उचित अधिकारी है। उसे अपने दूत को संरक्षण देना आता है । राम से कहिएगा कि मैंने उसका आचार्यत्व स्वीकार किया ।* 
           *जामवन्त को विदा करने के तत्काल उपरान्त लंकेश ने सेवकों को आवश्यक सामग्री संग्रह करने हेतु आदेश दिया और स्वयं अशोक वाटिका पहुँचे, जो आवश्यक उपकरण यजमान उपलब्ध न कर सके जुटाना आचार्य का परम कर्त्तव्य होता है । रावण जानता है कि वनवासी राम के पास क्या है और क्या होना चाहिए ।

    *अशोक उद्यान पहुँचते ही रावण ने सीता से कहा कि राम लंका विजय की कामना समुद्रतट पर महेश्वर लिंग विग्रह की स्थापना करने जा रहे हैं और रावण को आचार्य वरण किया है । यजमान का अनुष्ठान पूर्ण हो यह दायित्व आचार्य का भी होता है । तुम्हें विदित है कि अर्द्धांगिनी के बिना गृहस्थ के सभी अनुष्ठान अपूर्ण रहते हैं। विमान आ रहा है, उस पर बैठ जाना । ध्यान रहे कि तुम वहाँ भी रावण के अधीन ही रहोगी । अनुष्ठान समापन उपरान्त यहाँ आने के लिए विमान पर पुनः बैठ जाना । स्वामी का आचार्य अर्थात् स्वयं का आचार्य । यह जान जानकी जी ने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुका दिया । स्वस्थ कण्ठ से सौभाग्यवती भव कहते रावण ने दोनों हाथ उठाकर भरपूर आशीर्वाद दिया ।*
           *सीता और अन्य आवश्यक उपकरण सहित रावण आकाश मार्ग से समुद्र तट पर उतरा । आदेश मिलने पर आना कहकर सीता को उसने विमान में ही छोड़ा और स्वयं राम के सम्मुख पहुँचा । जामवन्त से संदेश पाकर भाई, मित्र और सेना सहित श्रीराम स्वागत सत्कार हेतु पहले से ही तत्पर थे ।* 
         सम्मुख होते ही वनवासी राम आचार्य दशग्रीव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया । दीर्घायु भव ! लंका विजयी भव ! दशग्रीव के आशीर्वचन के शब्द ने सबको चौंका दिया ।* 
        सुग्रीव ही नहीं विभीषण को भी उसने उपेक्षा कर दी । जैसे वे वहाँ हों ही नहीं ।
  भूमि शोधन के उपरान्त रावणाचार्य ने कहा कि यजमान ! अर्द्धांगिनी कहाँ है..?? उन्हें यथास्थान आसन दें ।* 
          श्रीराम ने मस्तक झुकाते हुए हाथ जोड़कर अत्यन्त विनम्र स्वर से प्रार्थना की कि यदि यजमान असमर्थ हो तो योग्याचार्य सर्वोत्कृष्ट विकल्प के अभाव में अन्य समकक्ष विकल्प से भी तो अनुष्ठान सम्पादन कर सकते हैं ।*
         अवश्य-अवश्य, किन्तु अन्य विकल्प के अभाव में ऐसा संभव है, प्रमुख विकल्प के अभाव में नहीं । यदि तुम अविवाहित, विधुर अथवा परित्यक्त होते तो संभव था । इन सबके अतिरिक्त तुम सन्यासी भी नहीं हो और पत्नीहीन वानप्रस्थ का भी तुमने व्रत नहीं लिया है । इन परिस्थितियों में पत्नी रहित अनुष्ठान तुम कैसे कर सकते हो..??* 
कोई उपाय आचार्य..??
            आचार्य आवश्यक साधन, उपकरण अनुष्ठान उपरान्त वापस ले जाते हैं । स्वीकार हो तो किसी को भेज दो, सागर सन्निकट पुष्पक विमान में यजमान पत्नी विराजमान हैं ।* 
श्रीराम ने हाथ जोड़कर मस्तक झुकाते हुए मौन भाव से इस सर्वश्रेष्ठ युक्ति को स्वीकार किया । श्री रामादेश के परिपालन में विभीषण मंत्रियों सहित पुष्पक विमान तक गए और सीता सहित लौटे ।* 
            *अर्द्ध यजमान के पार्श्व में बैठो अर्द्ध यजमान । आचार्य के इस आदेश का वैदेही ने पालन किया । गणपति पूजन, कलश स्थापना और नवग्रह पूजन उपरान्त आचार्य ने पूछा - लिंग विग्रह..???
            *यजमान ने निवेदन किया कि उसे लेने गत रात्रि के प्रथम प्रहर से पवनपुत्र कैलाश गए हुए हैं । अभी तक लौटे नहीं हैं, आते ही होंगे ।

*आचार्य ने आदेश दे दिया- विलम्ब नहीं किया जा सकता । उत्तम मुहूर्त उपस्थित है । इसलिए अविलम्ब यजमान-पत्नी बालुका-लिंग-विग्रह स्वयं बना ले ।
              *जनक नंदिनी ने स्वयं के कर-कमलों से समुद्र तट की आर्द्र रेणुकाओं से आचार्य के निर्देशानुसार यथेष्ट लिंग-विग्रह निर्मित की ।
         यजमान द्वारा रेणुकाओं का आधार पीठ बनाया गया । श्री सीताराम ने वही महेश्वर लिंग-विग्रह स्थापित किया । आचार्य ने परिपूर्ण विधि-विधान के साथ अनुष्ठान सम्पन्न कराया ।* 
अब आती है बारी आचार्य की दक्षिणा की.....!* 
श्रीराम ने पूछा - आपकी दक्षिणा...??* 
पुनः एक बार सभी को चौंकाया । आचार्य के शब्दों ने । घबराओ नहीं यजमान । स्वर्णपुरी के स्वामी की दक्षिणा सम्पत्ति नहीं हो सकती ।*   
          आचार्य जानते हैं कि उनका यजमान वर्तमान में वनवासी है, लेकिन फिर भी राम अपने आचार्य कि जो भी माँग हो उसे पूर्ण करने की प्रतिज्ञा करता है ।* 
        आचार्य जब मृत्यु शैय्या ग्रहण करे तब यजमान सम्मुख उपस्थित रहे। आचार्य ने अपनी दक्षिणा मांगी ।* 
      ऐसा ही होगा आचार्य । यजमान ने वचन दिया और समय आने पर निभाया भी ।

“रघुकुल रीति सदा चली आई । प्राण जाई पर वचन न जाई ।” 

           यह दृश्य वार्ता देख सुनकर सभी ने उपस्थित समस्त जन समुदाय के नयनाभिराम प्रेमाश्रुजल से भर गए । सभी ने एक साथ एक स्वर से सच्ची श्रद्धा के साथ इस अद्भुत आचार्य को प्रणाम किया । 
       रावण जैसे भविष्यदृष्टा ने जो दक्षिणा माँगी, उससे बड़ी दक्षिणा क्या हो सकती थी...?? जो रावण यज्ञ-कार्य पूरा करने हेतु राम की बंदी पत्नी को शत्रु के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है, व राम से लौट जाने की दक्षिणा कैसे मांग सकता है...???* 
      *बहुत कुछ हो सकता था । काश राम को वनवास न होता, काश माता सीता वन न जाती, किन्तु ये धरती तो है ही पाप भुगतने वालों के लिए और जो यहाँ आया है, उसे अपने पाप भुगतने होंगे और इसलिए रावण जैसा पापी लंका का स्वामी तो हो सकता है देवलोक का नहीं । वह तपस्वी रावण जिसे मिला था ब्रह्मा से विद्वता और अमरता का वरदान शिव भक्ति से पाया शक्ति का वरदान.... चारों वेदों का ज्ञाता, ज्योतिष विद्या का पारंगत, अपने घर की वास्तु शांति हेतु आचार्य रूप में जिसे, भगवान शंकर ने किया आमंत्रित..., शिव भक्त रावण, रामेश्वरम में शिवलिंग पूजा हेतु, अपने शत्रु प्रभु राम का, जिसने स्वीकार किया निमंत्रण । आयुर्वेद, रसायन और कई प्रकार की जानता जो विधियां, अस्त्र शास्त्र, तंत्र-मन्त्र की सिद्धियाँ..। शिव तांडव स्तोत्र का महान कवि, अग्नि-बाण ब्रह्मास्त्र का ही नहीं, बेला या वायलिन का आविष्कर्ता, जिसे देखते ही दरबार में राम भक्त हनुमान भी एक बार मुग्ध हो, बोल उठे थे -*
*"राक्षस राजश्य सर्व लक्षणयुक्ता"।*
*काश रामानुज लक्ष्मण ने सुर्पणखा की नाक न कटी होती, काश रावण के मन में सुर्पणखा के प्रति अगाध प्रेम न होता, अगर बदला लेने के लिए सुर्पणखा ने रावण को न उकसाया होता, रावण के मन में सीता हरण का ख्याल कभी न आया होता...।*
*इस तरह रावण में, अधर्म बलवान न होता, तो देव लोक का भी स्वामी रावण ही होता..।*

*(प्रमाण हेतू आज भी रामेश्वरम् देवस्थान में लिखा हुआ है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना श्रीराम ने महापंडित रावण द्वारा करवाई थी)*

मंगलवार, 6 फ़रवरी 2018

ĺ हमको गलत इतिहास पढ़ाया गया सिकंदर महान नहीं था पूरा पढ़ें

सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों को कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था | अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला | अपने आसपास के विद्रोहियों का दमन करके उसने ईरान पर आक्रमण किया, ईरान को जीतने के बाद गोर्दियास को जीता | गोर्दियास को विजय के बाद टायर को नष्ट कर डाला | बेबीलोन को विजय कर पूरे राज्य में आग लगवा दी | बाद में अफगानिस्तान के क्षेत्र को रोंद्ता हुआ सिन्धु नदी तक चढ़ आया |

सिकंदर को अपनी जीतों से घमंड होने लगा था  | वह अपने को ईश्वर का अवतार मानने लगा, तथा अपने को पूजा का अधिकारी समझने लगा | परंतु भारत में उसका वो मान मर्दन हुआ जो कि उसकी मृत्यु का कारण बना |

सिन्धु को पार करने के बाद भारत के तीन छोटे-छोटे राज्य थे | 1- तक्षशिला जहाँ का राजा अम्भी था, 2- पोरस, 3-अम्भिसार जो की काश्मीर के चारो और फैला हुआ था | अम्भी का पुरु से पुराना बैर था, इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया |

अम्भिसार ने भी तठस्त रहकर सिकंदर की राह छोड़ दी, परंतु भारत माता के वीर पुत्र पुरु ने सिकंदर से दो-दो हाथ करने का निर्णय कर लिया | आगे के युद्ध का वर्णन में यूरोपीय इतिहासकारों के वर्णन को ध्यान में रख कर करूँगा | सिकंदर ने आम्भी की साहयता से सिन्धु पर एक स्थायी पुल का निर्माण कर लिया |

प्लुतार्च के अनुसार :- 20,000 पैदल व 15000 घुड़सवार सिकंदर की सेना पुरु की सेना से बहुत अधिक थी, तथा सिकंदर की साहयता आम्भी की सेना ने भी की थी |

कर्तियास लिखता है की :- सिकंदर झेलम के दूसरी और पड़ाव डाले हुए था | सिकंदर की सेना का एक भाग झेलम नदी के एक द्वीप में पहुच गया | पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुच गए | उन्होंने यूनानी सैनिको के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया | अनेक यूनानी सैनिको को मार डाला गया | बचे कुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए | बाकि बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों के द्वारा हरनपुर से 60 किलोमीटर ऊपर की और पहुच गया | और वहीं से नदी को पार किया | वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ | उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ |

एरियन लिखता है कि :-भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोडे 'बुसे फेलास 'को मार डाला |

ये भी कहा जाता है की पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे, तो कर्तियास लिखता है कि :- इन पशुओं ने घोर आतंक पैदा कर दिया था | उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोडे न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे | अनेको विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके | सिकंदर ने छोटे शास्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी | इस आक्रमण से चिड़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पावों में कुचलना शुरू कर दिया |

वह आगे लिखता है कि :- सर्वाधिक ह्रदयविदारक द्रश्य यह था कि यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिको को अपनी सूंड सेपकड़ लेता व अपने महावत को सोंप देता और वो उसका सर धड से तुंरत अलग कर देता | इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता और युद्ध चलता ही रहता |

इसी प्रकार दियोदोरस लिखता है की :- हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए | अपने पैरों के तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिको को चूर-चूर कर दिया |

कहा जाता है की पुरु ने अनाव्यशक रक्तपात रोकने के लिए सिकंदर को अकेले ही निपटने का प्रस्ताव रक्खा था | परन्तु सिकंदर ने भयातुर उस वीर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था |

इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले श्री इ० ए० दब्ल्यु० बैज लिखते है की :- जेहलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया | सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि में लडाई को आगे जारी रखूँगा, तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूँगा | अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की | भारतीय परम्परा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वद्ध नही किया | इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की |
 
बिल्कुल साफ़ है की प्राचीन भारत की रक्षात्मक दिवार से टकराने के बाद सिकंदर का घमंड चूर हो चुका था | उसके सैनिक भी डरकर विद्रोह कर चुके थे | तब सिकंदर ने पुरु से वापस जाने की आज्ञा मांगी | पुरु ने सिकंदर को उस मार्ग से जाने को मना कर दिया जिससे वह आया था | और अपने प्रदेश से दक्षिण की ओर से जाने का मार्ग दिया |

जिन मार्गो से सिकंदर वापस जा रहा था, उसके सैनिको ने भूख के कारण राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया | इसी लूट को भारतीय इतिहास में सिकंदर की दक्षिण की ओर की विजय लिख दिया | परंतु इसी वापसी में मालवी नामक एक छोटे से भारतीय गणराज्य ने सिकंदर की लूटपाट का विरोध किया | इस लडाई में सिकंदर बुरी तरह घायल हो गया |

प्लुतार्च लिखता है कि :- भारत में सबसे अधिक खुंकार लड़ाकू जाति मलावी लोगो के द्वारा सिकंदर के टुकड़े-टुकड़े होने ही वाले थे, उनकी तलवारे व भाले सिकंदर के कवचों को भेद गए थे | और सिकंदर को बुरी तरह से आहात कर दिया | शत्रु का एक तीर उसका बख्तर पार करके उसकी पसलियों में घुस गया | सिकंदर घुटनों के बल गिर गया | शत्रु उसका शीश उतारने ही वाले थे की प्युसेस्तास व लिम्नेयास आगे आए | किंतु उनमे से एक तो मार दिया गया तथा दूसरा बुरी तरह घायल हो गया |

इसी भरी बाजार में सिकंदर की गर्दन पर एक लोहे की लाठी का प्रहार हुआ और सिकंदर अचेत हो गया | उसके अंगरक्षक उसी अवस्था में सिकंदर को निकाल ले गए | भारत में सिकंदर का संघर्ष सिकंदर की मृत्यु का कारण बन गया | 

अपने देश वापस जाते हुए वह बेबीलोन में रुका | भारत विजय करने में उसका घमंड चूर चूर हो गया | इसी कारण वह अत्यधिक मद्यपान करने लगा और ज्वर से पीड़ित हो गया | तथा कुछ दिन बाद उसी ज्वर (बुखार) ने उसकी प्राण ले ली |

स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सिकंदर भारत के एक भी राज्य को नही जीत पाया | परंतू पुरु से इतनी मार खाने के बाद भी इतिहास में जोड़ दिया गया कि सिकंदर ने पुरु पर जीत हासिल की | भारत में भी महान राजा पुरु की जीत को पुरु की हार ही बताया जाता है | यूनान सिकंदर को महान कह सकता है लेकिन भारतीय इतिहास में सिकंदर को नही बल्कि उस पुरु को महान लिखना चाहिए जिन्होंने एक विदेशी आक्रान्ता का मानमर्दन किया |

अधिक जानकारी के पिपासु , दिए गए शोध संकलनो से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं | एवम "ALEXANDER" नामक Hollywood की movie भी देख सकते हैं ।


महाभारत का सुंदर प्रसंग जरूर पढ़ें

अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा  के पास द्रौपदी गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली," पुत्री भविष्य में कभी तुम पर दुख,पीड़ा या घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।"

उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली,"
आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता?" द्रौपदी बोली,

" क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है।

जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया।

मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा 
वह सभी आंखे झुकाए आंसू बहाते रहे।"
फिर द्रौपदी ने भगवान से कहा,"आपके वाय मेरा कोई भी नहं है।

भगवान तुरंत आए और द्रौपदी की रक्षा करी।
जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं ।
क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था।

रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है। 
रूकमणि बोलती हैं,"आप जाएं और उसकी मदद करें।"
श्री कृष्ण बोले," जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं मैं कैसे
जा सकता हूं। 
एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूंगा।

तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए" मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई"।

उस समय "मेरी सभी 16 हजार 108 पत्नियां वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई"!

मगर उस समय "मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बांध दिया ।आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं नहीं जाऊंगा।"
अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े चले गये। 

इस प्रसंग से आप समझ सकते है के भक्त जब भी सच्चे मन से प्रभु स्मरण करेंगे तो प्रभु अवश्य  सुनेंगे!!
-------------
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
 श्री धाम वृंदावन मथुरा उत्तर प्रदेश
ph 09453316276
---------------

Abhimanyu's wife went to Draupadi near Uttarara and said, "Daughter, in the future, even if you face severe distress from suffering, pain or terrible, do not ever go to the shelter of any of your relatives. Go to the shelter of. "


Uttara surprised, while dancing towards Mother Draupadi, "

Why are you saying this to me? "Draupadi said,


"Because this thing has passed over me too.


When my five husbands were playing gambling with the Kurus, after losing all their worth, I too lost to my side. Then the Kaurava sons insulted me very much in the meeting.


I called my husbands for help, but they all bowed down their heads. Datta Bhishma, Drona Dhritarashtra kept calling everyone for help, but no one has seen me

He kept shedding all eyes and tears. "

Then Draupadi said to God, "Your age is none of mine.


God came immediately and saved Draupadi.

When such a calamity was occurring on Draupadi, Shri Krishna became very disturbed in Dwarka.

Because the worst devotee had suffered.


Rukmini asks him the reason for being unhappy, he explains that my greatest devotee is being nude in a crowded gathering.

Rukmini says, "You go and help him."

Sri Krishna says, "till Draupadi will not call me how I

I can go

Once he calls me, I will go to him immediately and protect him.


You will remember when the Pandavas offered the Rajasurya Yajna to kill the Shishu Pala, "When I put a wheel on my finger, my finger cut off from him".


At that time, "all my 16 thousand 108 wives were there. There was no one calling the doctor and then went to take some medicine"!


But at that time "my devotee torn the sack of his sari and tied it on my finger. Today I have to repay the debt of him but he will not call me till he will call me."

Therefore, Draupadi once called Lord Krishna, Lord Rama immediately ran away.


From this context you can understand that whenever the devotee remembers the Lord with a sincere heart, the Lord will surely listen !!

-------------

National Bhagwat Tale Spokesperson

Pramod Krishna Shastri ji Maharaj

Shri Dham Vrindavan Mathura Uttar Pradesh

ph 09453316276

---------------

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

मृत्यु से बच नहीं सकते सुंदर प्रसंग जरूर पढ़ें Can not escape the death of beautiful events


 एक बार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए।
द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर खुद शिव से मिलने अंदर
चले गए। तब कैलाश की अपूर्व प्राकृतिक शोभा
को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर
एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी।
चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे
विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।
उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से
पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की
द्रष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत
निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने
साथ यमलोक ले जाएँगे।

गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर
चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने
पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक
जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद
बापिस कैलाश पर आ गया।

आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया
कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी
नजर से क्यों देखा था। यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने
उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो
चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर
एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था
कि वो इतनी जलदी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब
जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी
होगी।"

गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी
भी चतुराई की जाए।"

इस लिए कृष्ण कहते है।
करता तू वह है 
जो तू चाहता है
परन्तु होता वह है
जो में चाहता हूँ
कर तू वह 
जो में चाहता हूँ
फिर होगा वो 
जो तू चाहेगा ।



   卐राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता卐
    प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 
  श्री धाम वृंदावन मथुरा उत्तर प्रदेश 
सम्पर्क 09453316276 / 08737866555


Once Lord Vishnu sat on Garuda and went to Kailash Mountain.

Leaving the Garuda at the door and meeting Shiva himself

gone. Then Kailash's unique natural splendor

Gauradas were spellbound after seeing that their eyes

A beautiful little bird lying on.

The bird was so beautiful that all of Garuda's

The idea started attracting towards him.

At the same time Yama Dev stepped on Kailash and went inside

First he surprised that little bird

Seen from the scene Garuda understood that the end of that bird

Is near and Yamedev goes out of Kailash

Will take Yallok along with them.


Garud pity So small and beautiful

The bird could not see death. Her own

Pressed in the toes and a thousand away from Kailash

Left a cliff in the forest, and myself

Bapis came to Kailash.


After all, when Yama came out, Garuda asked

That he got such a surprise from that bird

Why did you look at the eye? Yama Deo said, "When I got Garuda

I saw that bird so I knew that

Throwing away thousands of birds from here shortly

Will be eaten by a serpent. I was thinking

How will he get so far away so far, but now

When he is not here then surely he is dead

Will be. "


Garuda understood that "death can not be avoided, no matter how much

Let's be clever. "


That is why Krishna says.

Do you that

Whatever you want

But that would be

Which i want

Do you that

Which i want

Then he will

Which you want.





卐 National Bhagwat Story spokesman 卐



Pramod Krishna Shastri ji Maharaj

Shri Dham Vrindavan Mathura Uttar Pradesh

Contact 09453316276/08737866555

हरि बोल Hari Bol

हरे कृष्णा 

आप सभी का दिन मंगलमय हो
हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

भागवत कथा प्रवक्ता 
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
श्री धाम वृंदावन मथुरा उत्तर प्रदेश
Ph 09453316276 /  08737866555


Hare krishna


You all have a nice day

Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Krishna Hare Hare

Hare Ram Hare Rama Ram Ram Hare Hare


Bhagwat Tale Spokesperson

Pramod Krishna Shastri ji Maharaj

शनिवार, 3 फ़रवरी 2018

श्रीमद्भागवत महापुराण में लिखी 10 बातें इस कलयुग में हो रही है सच पढ़ें 10 things written in Srimad Bhagwat Mahapurana are happening in this Kali Yuga Read the truth


1.ततश्चानुदिनं धर्मः 
सत्यं शौचं क्षमा दया ।
कालेन बलिना राजन् 
नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥
  

*कलयुग में धर्म, स्वच्छता, सत्यवादिता, स्मृति, शारीरक शक्ति, दया भाव और जीवन की अवधि दिन-ब-दिन घटती जाएगी.*
  

2.वित्तमेव कलौ नॄणां जन्माचारगुणोदयः ।
धर्मन्याय व्यवस्थायां 
कारणं बलमेव हि ॥
  

*कलयुग में वही व्यक्ति गुणी माना जायेगा जिसके पास ज्यादा धन है. न्याय और कानून सिर्फ एक शक्ति के आधार पे होगा !*    
  

3.  दाम्पत्येऽभिरुचि  र्हेतुः 
मायैव  व्यावहारिके ।
स्त्रीत्वे  पुंस्त्वे च हि रतिः 
विप्रत्वे सूत्रमेव हि ॥

  
*कलयुग में स्त्री-पुरुष बिना विवाह के केवल रूचि के अनुसार ही रहेंगे.*
*व्यापार की सफलता के लिए मनुष्य छल करेगा और ब्राह्मण सिर्फ नाम के होंगे.*
  

4. लिङ्‌गं एवाश्रमख्यातौ अन्योन्यापत्ति कारणम् ।
अवृत्त्या न्यायदौर्बल्यं 
पाण्डित्ये चापलं वचः ॥  

  

*घूस देने वाले व्यक्ति ही न्याय पा सकेंगे और जो धन नहीं खर्च पायेगा उसे न्याय के लिए दर-दर की ठोकरे खानी होंगी. स्वार्थी और चालाक लोगों को कलयुग में विद्वान माना जायेगा.*
  

5. क्षुत्तृड्भ्यां व्याधिभिश्चैव 
संतप्स्यन्ते च चिन्तया ।
त्रिंशद्विंशति वर्षाणि परमायुः 
कलौ नृणाम. 
   

*कलयुग में लोग कई तरह की चिंताओं में घिरे रहेंगे. लोगों को कई तरह की चिंताए सताएंगी और बाद में मनुष्य की उम्र घटकर सिर्फ 20-30 साल की रह जाएगी.*

  
6. दूरे वार्ययनं तीर्थं 
लावण्यं केशधारणम् ।
उदरंभरता स्वार्थः सत्यत्वे 
धार्ष्ट्यमेव हि॥
  

*लोग दूर के नदी-तालाबों और पहाड़ों को तीर्थ स्थान की तरह जायेंगे लेकिन अपनी ही माता पिता का अनादर करेंगे. सर पे बड़े बाल रखना खूबसूरती मानी जाएगी और लोग पेट भरने के लिए हर तरह के बुरे काम करेंगे.*
  

7. अनावृष्ट्या  विनङ्‌क्ष्यन्ति दुर्भिक्षकरपीडिताः । शीतवातातपप्रावृड् 
हिमैरन्योन्यतः  प्रजाः ॥  
  

*कलयुग में बारिश नहीं पड़ेगी और हर जगह सूखा होगा.मौसम बहुत विचित्र अंदाज़ ले लेगा. कभी तो भीषण सर्दी होगी तो कभी असहनीय गर्मी. कभी आंधी तो कभी बाढ़ आएगी और इन्ही परिस्तिथियों से लोग परेशान रहेंगे.* 
  

8. अनाढ्यतैव असाधुत्वे 
साधुत्वे दंभ एव तु ।
स्वीकार एव चोद्वाहे 
स्नानमेव प्रसाधनम् ॥  

  
*कलयुग में जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होगा उसे लोग अपवित्र, बेकार और अधर्मी मानेंगे. विवाह के नाम पे सिर्फ समझौता होगा और लोग स्नान को ही शरीर का शुद्धिकरण समझेंगे.* 
  

9. दाक्ष्यं कुटुंबभरणं 
यशोऽर्थे धर्मसेवनम् ।
एवं प्रजाभिर्दुष्टाभिः 
आकीर्णे क्षितिमण्डले ॥  

  
*लोग सिर्फ दूसरो के सामने अच्छा दिखने के लिए धर्म-कर्म के काम करेंगे. कलयुग में दिखावा बहुत होगा और पृथ्वी पे भृष्ट लोग भारी मात्रा में होंगे. लोग सत्ता या शक्ति हासिल करने के लिए किसी को मारने से भी पीछे नहीं हटेंगे.* 
  

10. आच्छिन्नदारद्रविणा 
यास्यन्ति गिरिकाननम् ।
शाकमूलामिषक्षौद्र फलपुष्पाष्टिभोजनाः ॥  
  

*पृथ्वी के लोग अत्यधिक कर और सूखे के वजह से घर छोड़ पहाड़ों पे रहने के लिए मजबूर हो जायेंगे. कलयुग में ऐसा वक़्त आएगा जब लोग पत्ते, मांस, फूल और जंगली शहद जैसी चीज़ें खाने को मजबूर होंगे.* 
     

भागवत मे लिखी ये बातें इस कलयुग में सच होती दिखाई दे रही है. 

हमें गर्व है कि श्री कृष्ण जैसे अवतारों ने पृथ्वी पे आकर कलयुग की भविष्यवाणी इतनी पहले ही कर दी थी, 
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
  卐राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता卐
 "प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज"
श्री धाम वृंदावन मथुरा (उत्तर प्रदेश)
फोन 09453316276 / 08737866555
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■







1.Thastanuddin Dharma:

Forgive me for truth.

Kaleen Balina Rajan

Memory




* Due to religion, cleanliness, truthfulness, memory, physical strength, kindness, and life-time in Kali Yuga will decrease day by day.




2. Vitammeva Kalav Naanan Janamacharproduction:

Religious arrangements

The reason




* In Kalyug, the same person will be considered as a person who has more money. Justice and law will be on the basis of only one power! *




3. For the sake of roles:

Myway Practice

Female sexuality

The opposite formula and the




* In Kalyug, men and women will stay as per the interests of the marriage only. *

* For the success of business, man will deceive and Brahmin will be just names.




4. Linga avashramkhatau aliyaanyapatti reasonam.

Epistles judicial

Punditai chapla singh:.





* The person giving the bribe will be able to get justice and the money which will not be spent will have to rate the rate of justice for justice. Selfish and cunning people will be considered as scholars in Kalyug. *




5. Hypnotics

SantPesantte Ch Chinitaya

Trishadvadishti Varshani Paramayu:

Kalou Nrityam




* People in Kalyug will be surrounded by a variety of concerns. People will suffer many kinds of anxiety and later the age of man will be reduced to just 20-30 years. *




6. Other Warriors Teerthans

Salivation

Upright selfishness: truthfully

Dharathayamwe Hi




* People will go to distant rivers and ponds like a pilgrimage place, but they disrespect their own parents. Having a big hair on the head will be appreciated and people will do all kinds of bad things to fill the stomach. *




7. Uncertainty damaged by famine. Cold weather

HimanNonyas People




* Kaliyug will not rain and will dry everywhere. The weather will be very strange. Sometimes it will be a severe winter and sometimes unbearable heat. Sometimes a storm will ever flood and people will be disturbed by these situations. *




8. Unintentional unbeaten

Monks and demons

Accept and cloak

Bathmove Cosmetic




* In Kaliyug, the person who does not have wealth will consider the people to be impure, useless and unrighteous. Only on the name of marriage will be the agreement, and people will consider bathing as a purification of the body. *




9. Daxya Bhawan Bhawan

Yashothathe Dharamsenam

And worship

Horizontal horizons.




* People will do religious work just to look good in front of others. There will be lot of splendor in Kaliyug and people on earth will be in huge quantity. People will not go beyond killing someone to gain power or power. *




10. Acknowledgment

Yasiniti Girikanamam

ShakamalamishshakshodraFamilyShapePancharan:.




* The people of the earth will be forced to leave home and stay at the mountains due to excessive tax and drought. Such a time will come in Kalyug, when people will be forced to eat things such as leaves, meat, flowers and wild honey. *




These things written in Bhagwat are visible in this Kali-Yuga.


We are proud that incarnations like Shri Krishna have come to the earth and have predicted Kalyug so much earlier,

■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■

卐 National Bhagwat Story spokesman 卐

"Pramod Krishna Shastri ji Maharaj"

Shri Dham Vrindavan Mathura (Uttar Pradesh)

Phone 09453316276/08737866555

■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■

चार वेद छह शास्त्र 18 पुराण सात नदियों अष्टधातु 14 भुवन , नामों को पढ़ें

📖 हमारे चार वेद है।*
1] ऋग्वेद
2] सामवेद
3] अथर्ववेद
4] यजुर्वेद
*************************************
*📜 कुल 6 शास्त्र है।*
1] वेदांग
2] सांख्य
3] निरूक्त
4] व्याकरण
5] योग
6] छंद
*************************************
*⛲ हमारी 7 नदियां।*
1] गंगा
2] यमुना
3] गोदावरी
4] सरस्वती
5] नर्मदा
6] सिंधु
7] कावेरी
*************************************
*📚 हमारे 18 पुराण।*
1] मत्स्य पुराण
2] मार्कण्डेय पुराण
3] भविष्य पुराण
4] भगवत पुराण
5] ब्रह्मांड पुराण
6] ब्रह्मवैवर्त पुराण
7] ब्रह्म पुराण
8] वामन पुराण
9] वराह पुराण
10] विष्णु पुराण
11] वायु पुराण
12] अग्नि पुराण
13] नारद पुराण
14] पद्म पुराण
15] लिंग पुराण
16] गरुड़ पुराण
17] कूर्म पुराण
18] स्कंद पुराण
*************************************
*🍚 पंचामृत।*
1] दूध
2] दहीं
3] घी
4] मध
5] साकर
***********************
*🌌 पंचतत्व।*
1] पृथ्वी
2] जल
3] तेज
4] वायु
5] आकाश
***********************
*☘ तीन गुण।*
1] सत्व्
2] रज्
3] तम्
**********************
*🌀 तीन दोष।*
1] वात्
2] पित्त्
3] कफ
***********************
*🌁 तीन लोक।*
1] आकाश लोक
2] मृत्यु लोक
3] पाताल लोक
***********************
*🌊 सात महासागर।*
1] क्षीरसागर
2] दधिसागर
3] घृतसागर
4] मथानसागर
5] मधुसागर
6] मदिरासागर
7] लवणसागर
***********************
*🌅 सात द्वीप।*
1] जम्बू द्वीप
2] पलक्ष द्वीप
3] कुश द्वीप
4] पुष्कर द्वीप
5] शंकर द्वीप
6] कांच द्वीप
7] शालमाली द्वीप
***********************
*🗿 तीन देव।*
 1] ब्रह्मा
 2] विष्णु
 3] महेश
***********************
*🐋🐄🐍 तीन जीव।*
1] जलचर
2] नभचर
3] थलचर
***********************
*👴👨👦👳 चार वर्ण।*
1] ब्राह्मण
2] क्षत्रिय
3] वैश्य
4] शूद्र
***********************
*🚩 चार फल (पुरुषार्थ)।*
1] धर्म
2] अर्थ
3] काम
4] मोक्ष
***********************
*👺 चार शत्रु।*
1] काम
2] क्रोध 
3] मोह
4] लोभ
***********************
*🏡 चार आश्रम।*
1] ब्रह्मचर्य
2] गृहस्थ
3] वानप्रस्थ
4] संन्यास
***********************
*💎 अष्टधातु।*
1] सोना
2] चांदी
3] तांबु
4] लोह
5] सीसु
6] कांस्य
7] पित्तल
8] रांगु
***********************
*👥 पंचदेव।*
1] ब्रह्मा
2] विष्णु
3] महेश
4] गणेश
5] सूर्य
***********************
*👁 चौदह रत्न।*
1] अमृत
2] अैरावत हाथी
3] कल्पवृक्ष
4] कौस्तुभ मणी
5] उच्चै:श्रवा अश्व
6] पांचजन्य शंख
7] चंद्रमा
8] धनुष
9] कामधेनु गाय
10] धनवंतरी
11] रंभा अप्सरा
12] लक्ष्मी माताजी 
13] वारुणी
14] वृष
***********************
*🌹🙏🏻  नवधा भक्ति।*
1] श्रवण
2] कीर्तन
3] स्मरण
4] पादसेवन
5] अर्चना
6] वंदना
7] मित्र
8] दास्य
9] आत्मनिवेदन
*********************
*🌍 चौदह भुवन।*
1] तल
2] अतल
3] वितल
4] सुतल
5] रसातल
6] पाताल
7] भुवलोक
8] भुलोक
9] स्वर्ग
10] मृत्युलोक
11] यमलोक
12] वरुणलोक
13] सत्यलोक
14] ब्रह्मलोक.
ॐ▪▪▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪▪▪▪▪ॐ
  卐भागवत कथा प्रवक्ता卐
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 
श्री धाम वृंदावन मथुरा  {उत्तर प्रदेश}
फोन 09453316276 / 08737866555
 ॐ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤¤ॐ

हमारे पास चाहे कुछ भी हो लेकिन प्रभु की भक्ति के बिना सब कुछ अधूरा होता है श्लोक अर्थ

शरीरं सुरूपं नवीनं कलत्रं
             धनं मेरुतुल्यं यशश्चारु चित्रम्।
हरेरङ्घ्रिपद्मे मनश्चेन्न लग्नं
           तत: किं तत: किं तत: किं तत: किम्॥
▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪ॐ
 भावार्थ :- शरीर चाहे कितना भी सुन्दर हो , पत्नी चाहे कितनी भी मनमोहिनी हो , धन चाहे कितना भी सुमेरु पर्वत की भाँति असीम हो और सम्पूर्ण विश्व में चाहे कितना भी यश प्राप्त हो चुका हो, परन्तु जब तक जीवन देने वाले भगवान् श्रीहरि के चरणकमलों में मन नहीं लगा तब तक क्या प्राप्त किया ? क्या पाया ? अर्थात् सब व्यर्थ है ।
ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ▪▪▪▪▪ॐ
     卐भागवत कथा प्रवक्ता卐
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 
श्री धाम वृंदावन मथुरा (उत्तर प्रदेश)
Ph 09453316276 / 08737866555
ॐ¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤¤¤¤ॐ¤¤¤¤¤ॐ

अच्छे कर्म का क्या फल होता है सुंदर प्रसंग What is the result of good deeds

|| जय श्री राधे ||
कर्मफल का विधान             
👉🏽भगवान ने नारद जी से कहा आप भ्रमण करते रहते हो कोई ऐसी घटना बताओ जिसने तम्हे असमंजस मे डाल दिया हो...


नारद जी ने कहा प्रभु

अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था।


तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया। आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया और उसे चोट लग गयी । भगवान बताइए यह कौन सा न्याय है।


भगवान मुस्कुराए, फिर बोले नारद यह सही ही हुआ। जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।

वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। अब नारद जी संतुष्ट थे|


सार :


सदा अच्छे कर्म मे ही प्रवत्त रहना चाहिए 

    ▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬
श्रीमद्भागवत कथा , कराने के लिये संम्पर्क करे 
      प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
श्री धाम  वृंदावन मथुरा( उत्तर प्रदेश)
फोन 09453316276 / 08737866555

    ▬▬▬▬ஜ۩۞۩ஜ▬▬▬▬
  | Jai Shree Radhe ||

Legislative Legislation *

👉🏽 God told Narad ji, you used to travel, tell an incident that has put you in confusion ...



Narada ji said Lord


Right now I am coming from a forest, where a cow was trapped in the swamps. There was no one to save him.



Only then did a thief go through, seeing the cow trapped, did not even stop, in turn reared the feet and crossed the swamp. Going forward, he found a bag full of gold pieces. After a while, an elderly sadhu passed from there. He tried his best to save the cow. With the force of the whole body saved that cow, but I saw that after the removal of cow from the swamps, the saint went ahead and fell into a pit and he got hurt. Tell God what justice it is.



God smiled, then said Narada it was right. The thief who ran away on the cow had a treasure in his destiny, but due to his sin, he got only a few pieces.


At that time the sadhu had to fall in the pit because his death had been written in the fate, but due to the saving of the cow, his virtue increased and he died in a minor injury. His destiny is determined by the deeds of man. Now Narad ji was satisfied.



abstract :



Must always remain in good deeds


▬▬▬▬ஜ ۩۞۩ ஜ▬▬▬▬

Please share the story of Shrimad Bhagwat

Pramod Krishna Shastri ji Maharaj

Shri Dham Vrindavan Mathura (Uttar Pradesh)

Phone 09453316276/08737866555


▬▬▬▬ஜ ۩۞۩ ஜ▬▬▬▬

गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri 

वृंदावन की गोपी का प्रसंग एक बार जरूर पढ़ें

वृंदावन की एक गोपी रोज दूध दही बेचने मथुरा जाती थी,*

एक दिन व्रज में एक संत आये, गोपी भी कथा सुनने गई,*

संत कथा में कह रहे थे, भगवान के नाम की बड़ी महिमा है, नाम से बड़े बड़े संकट भी टल जाते है.*

नाम तो भव सागर से तारने वाला है,*
.
यदि भव सागर से पार होना है तो भगवान का नाम कभी मत छोडना.*

कथा समाप्त हुई गोपी अगले दिन फिर दूध दही बेचने चली,*
.
*बीच में यमुना जी थी. गोपी को संत की बात याद आई, संत ने कहा था भगवान का नाम तो भवसागर से पार लगाने वाला है,

जिस भगवान का नाम भवसागर से पार लगा सकता है तो क्या उन्ही भगवान का नाम मुझे इस साधारण सी नदी से पार नहीं लगा सकता ?*🤔 

ऐसा सोचकर गोपी ने मन में भगवान के नाम का आश्रय लिया भोली भाली गोपी यमुना जी की ओर आगे बढ़ गई.*

अब जैसे ही यमुना जी में पैर रखा तो लगा मानो जमीन पर चल रही है और ऐसे ही सारी नदी पार कर गई,*

पार पहुँचकर बड़ी प्रसन्न हुई, और मन में सोचने लगी कि संत ने तो ये तो बड़ा अच्छा तरीका बताया पार जाने का,*

रोज-रोज नाविक को भी पैसे नहीं देने पड़ेगे.*

🤔एक दिन गोपी ने सोचा कि संत ने मेरा इतना भला किया मुझे उन्हें खाने पर बुलाना चाहिये,*
.
अगले दिन गोपी जब दही बेचने गई, तब संत से घर में भोजन करने को कहा संत तैयार हो गए,*
.
अब बीच में फिर यमुना नदी आई.*
संत नाविक को बुलने लगा तो गोपी बोली बाबा नाविक को क्यों बुला रहे है. हम ऐसे ही यमुना जी में चलेगे.*
.
संत बोले - गोपी ! कैसी बात करती हो, यमुना जी को ऐसे ही कैसे पार करेगे ?*
.
गोपी बोली - बाबा ! आप ने ही तो रास्ता बताया था, आपने कथा में कहा था कि भगवान के नाम का आश्रय लेकर भवसागर से पार हो सकते है.*

🤔तो मैंने सोचा जब भव सागर से पार हो सकते है तो यमुना जी से पार क्यों नहीं हो सकते ?*
.
और मै ऐसा ही करने लगी, इसलिए मुझे अब नाव की जरुरत नहीं पड़ती.*
.
संत को विश्वास नहीं हुआ बोले - गोपी तू ही पहले चल ! मै तुम्हारे पीछे पीछे आता हूँ,*
.
गोपी ने भगवान के नाम का आश्रय लिया और जिस प्रकार रोज जाती थी वैसे ही यमुना जी को पार कर गई.*
.
अब जैसे ही संत ने यमुना जी में पैर रखा तो झपाक से पानी में गिर गए, संत को बड़ा आश्चर्य,*
.
अब गोपी ने जब देखा तो कि संत तो पानी में गिर गए है तब गोपी वापस आई है और संत का हाथ पकड़कर जब चली तो संत भी गोपी की भांति ही ऐसे चले जैसे जमीन पर चल रहे हो


*संत तो गोपी के चरणों में गिर पड़े, और बोले - कि गोपी तू धन्य है !*
.
*📿वास्तव में तो सही अर्थो में नाम का आश्रय तो तुमने लिया है और मै जिसने नाम की महिमा बताई तो सही पर स्वयं नाम का आश्रय नहीं लिया..*

*सच मे भक्त मित्रो हम भगवान नाम का जप एंव आश्रय तो लेते है पर भगवान नाम मे पूर्ण विश्वाव एंव श्रद्धा नही होने से हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त नही कर पाते..*
*शास्त्र बताते है कि भगवान श्री कृष्ण का एक नाम इतने पापो को मिटा सकता है जितना कि एक पापी व्यक्ति कभी कर भी नही सकता..*

*अतएव भगवान नाम पे पूर्ण श्रद्धा  एंव विश्वास रखकर ह्रदय के अंतकरण से भाव विह्वल होकर जैसे एक छोटा बालक अपनी माँ के लिए बिलखता है ..उसी भाव से सदैव नाम प्रभु का सुमिरन एंव जप करे*

*कलियुग केवल नाम अधारा !*
*सुमिर सुमिर नर उताराहि ही पारा!!*

*📿हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !*
*📿हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!*

शेयर जरुर कीजियेगा ❤

❤ राधे राधे ❤

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri 

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri 

Pramod Krishna Shastri



Pramod Krishna Shastri 

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri 

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri 

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?

महादेव जी को एक बार बिना कारण के किसी को प्रणाम करते देखकर पार्वती जी ने पूछा आप किसको प्रणाम करते रहते हैं?

शिव जी पार्वती जी से कहते हैं कि हे देवी ! जो व्यक्ति एक बार *राम* कहता है उसे मैं तीन बार प्रणाम करता हूँ। 

*पार्वती जी ने एक बार शिव जी से पूछा आप श्मशान में क्यूँ जाते हैं और ये चिता की भस्म शरीर पे क्यूँ लगाते हैं?*

उसी समय शिवजी पार्वती जी को श्मशान ले गए। वहाँ एक शव अंतिम संस्कार के लिए लाया गया। लोग *राम नाम सत्य है* कहते हुए शव को ला रहे थे। 

शिव जी ने कहा कि देखो पार्वती ! इस श्मशान की ओर जब लोग आते हैं तो *राम* नाम का स्मरण करते हुए आते हैं। और इस शव के निमित्त से कई लोगों के मुख से मेरा अतिप्रिय दिव्य *राम* नाम निकलता है उसी को सुनने मैं श्मशान में आता हूँ, और इतने लोगों के मुख से *राम* नाम का जप करवाने में निमित्त बनने वाले इस शव का मैं सम्मान करता हूँ, प्रणाम करता हूँ, और अग्नि में जलने के बाद उसकी भस्म को अपने शरीर पर लगा लेता हूँ।

 *राम* नाम बुलवाने वाले के प्रति मुझे अगाध प्रेम रहता है। 

एक बार शिवजी कैलाश पर पहुंचे और पार्वती जी से भोजन माँगा। पार्वती जी विष्णु सहस्रनाम का पाठ कर रहीं थीं। पार्वती जी ने कहा अभी पाठ पूरा नही हुआ, कृपया थोड़ी देर प्रतीक्षा कीजिए।

 शिव जी ने कहा कि इसमें तो समय और श्रम दोनों लगेंगे। संत लोग जिस तरह से सहस्र नाम को छोटा कर लेते हैं और नित्य जपते हैं वैसा उपाय कर लो। 

पार्वती जी ने पूछा वो उपाय कैसे करते हैं? मैं सुनना चाहती हूँ। 

शिव जी ने बताया, केवल एक बार *राम* कह लो तुम्हें सहस्र नाम, भगवान के एक हज़ार नाम लेने का फल मिल जाएगा। 

एक *राम* नाम हज़ार दिव्य नामों के समान है। 

पार्वती जी ने वैसा ही किया। 

पार्वत्युवाच –
*केनोपायेन लघुना विष्णोर्नाम सहस्रकं?*
*पठ्यते पण्डितैर्नित्यम् श्रोतुमिच्छाम्यहं प्रभो।।*

ईश्वर उवाच-
*श्री राम राम रामेति, रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्र नाम तत्तुल्यम राम नाम वरानने।।*

यह *राम* नाम सभी आपदाओं को हरने वाला, सभी सम्पदाओं को देने वाला दाता है, सारे संसार को विश्राम/शान्ति प्रदान करने वाला है। इसीलिए मैं इसे बार बार प्रणाम करता हूँ। 

*आपदामपहर्तारम् दातारम् सर्वसंपदाम्।*
*लोकाभिरामम् श्रीरामम् भूयो भूयो नमयहम्।*

 भव सागर के सभी समस्याओं और दुःख के बीजों को भूंज के रख देनेवाला/समूल नष्ट कर देने वाला, सुख संपत्तियों को अर्जित करने वाला, यम दूतों को खदेड़ने/भगाने वाला केवल *राम* नाम का गर्जन(जप) है। 

*भर्जनम् भव बीजानाम्, अर्जनम् सुख सम्पदाम्।*
*तर्जनम् यम दूतानाम्, राम रामेति गर्जनम्।*

प्रयास पूर्वक स्वयम् भी *राम* नाम जपते रहना चाहिए और दूसरों को भी प्रेरित करके *राम* नाम जपवाना चाहिए। इस से अपना और दूसरों का तुरन्त कल्याण हो जाता है। यही सबसे सुलभ और अचूक उपाय है। 

 इसीलिए हमारे देश में प्रणाम–
 *राम राम* कहकर किया जाता है। 

*जय श्री राम*
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

Pramod Krishna Shastri

Pramod Krishna Shastri