सिकंदर अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों को कत्ल करने के बाद मेसेडोनिया के सिंहासन पर बैठा था | अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व विजय को निकला | अपने आसपास के विद्रोहियों का दमन करके उसने ईरान पर आक्रमण किया, ईरान को जीतने के बाद गोर्दियास को जीता | गोर्दियास को विजय के बाद टायर को नष्ट कर डाला | बेबीलोन को विजय कर पूरे राज्य में आग लगवा दी | बाद में अफगानिस्तान के क्षेत्र को रोंद्ता हुआ सिन्धु नदी तक चढ़ आया |
सिकंदर को अपनी जीतों से घमंड होने लगा था | वह अपने को ईश्वर का अवतार मानने लगा, तथा अपने को पूजा का अधिकारी समझने लगा | परंतु भारत में उसका वो मान मर्दन हुआ जो कि उसकी मृत्यु का कारण बना |
सिन्धु को पार करने के बाद भारत के तीन छोटे-छोटे राज्य थे | 1- तक्षशिला जहाँ का राजा अम्भी था, 2- पोरस, 3-अम्भिसार जो की काश्मीर के चारो और फैला हुआ था | अम्भी का पुरु से पुराना बैर था, इसलिए उसने सिकंदर से हाथ मिला लिया |
अम्भिसार ने भी तठस्त रहकर सिकंदर की राह छोड़ दी, परंतु भारत माता के वीर पुत्र पुरु ने सिकंदर से दो-दो हाथ करने का निर्णय कर लिया | आगे के युद्ध का वर्णन में यूरोपीय इतिहासकारों के वर्णन को ध्यान में रख कर करूँगा | सिकंदर ने आम्भी की साहयता से सिन्धु पर एक स्थायी पुल का निर्माण कर लिया |
प्लुतार्च के अनुसार :- 20,000 पैदल व 15000 घुड़सवार सिकंदर की सेना पुरु की सेना से बहुत अधिक थी, तथा सिकंदर की साहयता आम्भी की सेना ने भी की थी |
कर्तियास लिखता है की :- सिकंदर झेलम के दूसरी और पड़ाव डाले हुए था | सिकंदर की सेना का एक भाग झेलम नदी के एक द्वीप में पहुच गया | पुरु के सैनिक भी उस द्वीप में तैरकर पहुच गए | उन्होंने यूनानी सैनिको के अग्रिम दल पर हमला बोल दिया | अनेक यूनानी सैनिको को मार डाला गया | बचे कुचे सैनिक नदी में कूद गए और उसी में डूब गए | बाकि बची अपनी सेना के साथ सिकंदर रात में नावों के द्वारा हरनपुर से 60 किलोमीटर ऊपर की और पहुच गया | और वहीं से नदी को पार किया | वहीं पर भयंकर युद्ध हुआ | उस युद्ध में पुरु का बड़ा पुत्र वीरगति को प्राप्त हुआ |
एरियन लिखता है कि :-भारतीय युवराज ने अकेले ही सिकंदर के घेरे में घुसकर सिकंदर को घायल कर दिया और उसके घोडे 'बुसे फेलास 'को मार डाला |
ये भी कहा जाता है की पुरु के हाथी दल-दल में फंस गए थे, तो कर्तियास लिखता है कि :- इन पशुओं ने घोर आतंक पैदा कर दिया था | उनकी भीषण चीत्कार से सिकंदर के घोडे न केवल डर रहे थे बल्कि बिगड़कर भाग भी रहे थे | अनेको विजयों के ये शिरोमणि अब ऐसे स्थानों की खोज में लग गए जहाँ इनको शरण मिल सके | सिकंदर ने छोटे शास्त्रों से सुसज्जित सेना को हाथियों से निपटने की आज्ञा दी | इस आक्रमण से चिड़कर हाथियों ने सिकंदर की सेना को अपने पावों में कुचलना शुरू कर दिया |
वह आगे लिखता है कि :- सर्वाधिक ह्रदयविदारक द्रश्य यह था कि यह मजबूत कद वाला पशु यूनानी सैनिको को अपनी सूंड सेपकड़ लेता व अपने महावत को सोंप देता और वो उसका सर धड से तुंरत अलग कर देता | इसी प्रकार सारा दिन समाप्त हो जाता और युद्ध चलता ही रहता |
इसी प्रकार दियोदोरस लिखता है की :- हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए | अपने पैरों के तले उन्होंने बहुत सारे यूनानी सैनिको को चूर-चूर कर दिया |
कहा जाता है की पुरु ने अनाव्यशक रक्तपात रोकने के लिए सिकंदर को अकेले ही निपटने का प्रस्ताव रक्खा था | परन्तु सिकंदर ने भयातुर उस वीर प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था |
इथोपियाई महाकाव्यों का संपादन करने वाले श्री इ० ए० दब्ल्यु० बैज लिखते है की :- जेहलम के युद्ध में सिकंदर की अश्व सेना का अधिकांश भाग मारा गया | सिकंदर ने अनुभव किया कि यदि में लडाई को आगे जारी रखूँगा, तो पूर्ण रूप से अपना नाश कर लूँगा | अतः उसने युद्ध बंद करने की पुरु से प्रार्थना की | भारतीय परम्परा के अनुसार पुरु ने शत्रु का वद्ध नही किया | इसके पश्चात संधि पर हस्ताक्षर हुए और सिकंदर ने पुरु को अन्य प्रदेश जीतने में सहायता की |
बिल्कुल साफ़ है की प्राचीन भारत की रक्षात्मक दिवार से टकराने के बाद सिकंदर का घमंड चूर हो चुका था | उसके सैनिक भी डरकर विद्रोह कर चुके थे | तब सिकंदर ने पुरु से वापस जाने की आज्ञा मांगी | पुरु ने सिकंदर को उस मार्ग से जाने को मना कर दिया जिससे वह आया था | और अपने प्रदेश से दक्षिण की ओर से जाने का मार्ग दिया |
जिन मार्गो से सिकंदर वापस जा रहा था, उसके सैनिको ने भूख के कारण राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया | इसी लूट को भारतीय इतिहास में सिकंदर की दक्षिण की ओर की विजय लिख दिया | परंतु इसी वापसी में मालवी नामक एक छोटे से भारतीय गणराज्य ने सिकंदर की लूटपाट का विरोध किया | इस लडाई में सिकंदर बुरी तरह घायल हो गया |
प्लुतार्च लिखता है कि :- भारत में सबसे अधिक खुंकार लड़ाकू जाति मलावी लोगो के द्वारा सिकंदर के टुकड़े-टुकड़े होने ही वाले थे, उनकी तलवारे व भाले सिकंदर के कवचों को भेद गए थे | और सिकंदर को बुरी तरह से आहात कर दिया | शत्रु का एक तीर उसका बख्तर पार करके उसकी पसलियों में घुस गया | सिकंदर घुटनों के बल गिर गया | शत्रु उसका शीश उतारने ही वाले थे की प्युसेस्तास व लिम्नेयास आगे आए | किंतु उनमे से एक तो मार दिया गया तथा दूसरा बुरी तरह घायल हो गया |
इसी भरी बाजार में सिकंदर की गर्दन पर एक लोहे की लाठी का प्रहार हुआ और सिकंदर अचेत हो गया | उसके अंगरक्षक उसी अवस्था में सिकंदर को निकाल ले गए | भारत में सिकंदर का संघर्ष सिकंदर की मृत्यु का कारण बन गया |
अपने देश वापस जाते हुए वह बेबीलोन में रुका | भारत विजय करने में उसका घमंड चूर चूर हो गया | इसी कारण वह अत्यधिक मद्यपान करने लगा और ज्वर से पीड़ित हो गया | तथा कुछ दिन बाद उसी ज्वर (बुखार) ने उसकी प्राण ले ली |
स्पष्ट रूप से पता चलता है कि सिकंदर भारत के एक भी राज्य को नही जीत पाया | परंतू पुरु से इतनी मार खाने के बाद भी इतिहास में जोड़ दिया गया कि सिकंदर ने पुरु पर जीत हासिल की | भारत में भी महान राजा पुरु की जीत को पुरु की हार ही बताया जाता है | यूनान सिकंदर को महान कह सकता है लेकिन भारतीय इतिहास में सिकंदर को नही बल्कि उस पुरु को महान लिखना चाहिए जिन्होंने एक विदेशी आक्रान्ता का मानमर्दन किया |
अधिक जानकारी के पिपासु , दिए गए शोध संकलनो से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं | एवम "ALEXANDER" नामक Hollywood की movie भी देख सकते हैं ।
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