शनिवार, 31 मार्च 2018

Pramod Krishna Shastri 
अभी दिसम्बर में एक दोस्त की शादी अटेंड करने के लिए मैं बहराईच गया था, शादी 24 दिसम्बर की थी मैं और मेरे कुछ दोस्त 23 को बहराइच पहुँच गए।
चूँकि शादी का माहौल था सभी लोग काम काज में बिज़ी थे, और कुछ लोग अपने नाच गानों में व्यस्त थे सो किसी को हमें बहराइच घूमाने का समय नही मिला।
24 को बारात अटेंड की ख़ूब डांस मौज मस्ती हुई ,
अगले दिन हम सभी वापस आने के लिए पैकिंग कर रहे थे, तभी मेरे दोस्त के पिताजी ने कहा बेटा कुछ दिन और रुक जाते अभी तो आपने बहराइच भी नही घुमा है, कल हम सभी बहु को लेकर "गाज़ी बाबा" की दरगाह पर जायेंगे आप लोग भी चलो, आप लोग बहराइच तक आये हो तो कम से कम गाज़ी बाबा की दरगाह तो देखकर ही जाओ,
चूँकि मेरे दोस्तों ने तो मना किया की और कहा 'अंकल हम फिर कभी आएंगे बहराईच तब गाज़ी बाबा की दरगाह घूम कर जायेंगे, अभी हमें जाना होगा'
लेकिन मैने अंकल से कहा की हम सभी कल आप लोगों के साथ जाएँगे।
मैंने दोस्तों को समझाया एक दिन रुकने के लिये वो भी मान गये।
" रात में कई बार सोचा की इन सभी को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाऊँ लेकिन फिर दिमाग़ में वोही बातें अटैक करने लगीं की हिंदुओ को इतनी आसानी से समझ में कहाँ आता है, अगर इतनी ही आसानी से हिन्दू समझ जाते तो हिन्दू 1200 साल ग़ुलाम कैसे रहते,"
अगले दिन सुबह मैने उन लोगों को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाने की हल्की सी कोशिश की, और यह जानने की कोशिश की उन लोगों की उस मज़ार से क्या आस्था है लेकिन वो हिन्दू परिवार बहुत ही सहष्णु और सेक्युलर वादी था, उनके अनुसार वो दरगाह हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक था।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर जा रहे थे,
मै थोड़ा उदास भी था क्योंकि मुझे ये देखकर दुःख हो रहा था की हिंदू इतना मूर्ख कैसे हो सकता है जो निरंतर मुस्लिमों के चँगुल में फँसता ही चला जा रहा हो, जो इनके स्लो पोइजन सूफिज्म के फ़ैलाये जाल से बाहर निकलने की कोशिश भी नही करता, आज हिन्दू जिस गाज़ी की पूजा कर रहा है, वह हिन्दू उस ग़ाज़ी के इतिहास को जानने की कोशिस भी नही करता।
दरगाह से काफ़ी दूरी पहले ही गाड़ियाँ रोक दी गयीं सभी लोग दरगाह जाने लगे, वहाँ जाकर पता चला की कितने हिन्दू आज भी अंध विश्वासी बन मज़ारों पर माथा टेक रहे हैं कुछ महंगी महँगी चादर चढ़ा रहे हैं और मन्नतें माँग रहे हैं,
लेकिन वो हिन्दू ये नही जानते की जिसने जिन्दा रहते हुए केवल इस्लाम का परचम फ़ैलाने के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें कैसे पूरी कर सकता है।
अब हम सभी वापिस आ रहे थे की रास्ते में एक शमसान घाट मिला मैंने अपनी गाड़ी शमसान घाट पर रोक दी और मैं माथा टेकते हुए शमसान घाट के अंदर गया अब मैंने सभी लोगों को बुलाया लेकिन कोई भी शमसान घाट में आने को तैयार नही फिर मैंने अंकल को बोला की अंकल जी प्लीज् अंदर आओ, आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ, अब अंकल जी बोले बेटा अगर शमसान घाट के अंदर आऊँगा तो फिर जाकर नहाना पड़ेगा और यहाँ भूत रहते हैं।
मैंने कहा अंकल जी आप को नहाना तो वैसे भी पड़ेगा क्योंकि आप ऑलरेडी एक शमसान घाट होकर आये हो और कब्र में लेटे हुए भूत से मन्नतें माँग कर आये हो।
आप आओ तो सही आपको कुछ बताना चाहता हूँ, अब मुँह लटका के एक एक करके सभी लोग शमसान घाट के अंदर आ गए,
अब मैंने बोलना शुरू किया की अंकल आप बताओ "क्या कोई मुस्लिम जिसनें इस्लाम के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो, क्या वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें पूरी करेगा"
वो बोले "नही करेगा कभी नही करेगा, जब जिंदा रहते हुए हिंदुओं से इतनी नफ़रत थी तो वो मरने के बाद कैसे हिंदुओं की मनोकामनाएं पूरी करेगा, वो ऐसा कतई नही करेगा"
अब मैंने उनसे पूछा क्या आप जानते हो की सैयद सालार गाज़ी कौन था ??
उस कब्र का इतिहास क्या है, ग़ाज़ी का अर्थ क्या है??
तो सुनों
आप सभी महमूद गज़नवी (गज़नी) के बारे में तो जानते ही होंगे, वही मुस्लिम आक्रांता जिसने सोमनाथ पर 16 बार हमला किया और भारी मात्रा में सोना हीरे-जवाहरात आदि लूट कर ले गया था। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आखिरी बार सन् 1024 में हमला किया था तथा उसने व्यक्तिगत रूप से सामने खड़े होकर शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े किये और उन टुकड़ों को अफ़गानिस्तान के गज़नी शहर की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में सन् 1026 में लगवाया, जिसके प्रमाण भी मिल चुके हैं।
इसी लुटेरे महमूद गजनवी का ही भांजा था सैयद सालार मसूद उर्फ़ आपका गाज़ी बाबा, यह बड़ी भारी सेना लेकर सन् 1031 में भारत आया। सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा एक सनकी किस्म का धर्मान्ध इस्लामिक आक्रान्ता था। महमूद गजनवी तो सिर्फ़ लूटने के लिये भारत आता था, लेकिन सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा भारत में विशाल सेना लेकर आया था उसका मक़सद भारतभूमि को “दारुल-इस्लाम” बनाकर रहना था, और इस्लाम का प्रचार पूरे भारत में करना था जाहिर है कि तलवार के बल पर।
सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया। एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद ही युद्ध था जो भारत को इस्लामिक मुल्क़ बनाने के लिए हुआ था। सैयद सालार मसूद सिर्फ़ लूटने की नीयत से भारत नही आया था बल्कि बसने राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर भारत आया था।
पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई।
सालार मसूद ग़ाज़ी के इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये लेकिन सालार मसूद ने माँग ठुकरा दी उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी।
इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है।
उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया, बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
जब फ़िरोज़शाह तुगलक बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था।
फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने ग़ाज़ी बाबा की दरग़ाह पर आना अनिवार्य कर दिया, उस समय हिन्दू अपनी मौत के डर से न चाहते हुए भी इस दरग़ाह पर आते थे, दरगाह पर आना उनकी मज़बूरी बन चुकी थी।
लेक़िन अब आज के समय इस इस्लामिक आक्रांता के आगे आप सभी माथा टेकते हो "जिसने अपने जीवित रहते हुए लाखों हिंदुओ को मारा हो उस सालार ग़ाज़ी की क़ब्र के सामने आप जैसे हिंदुओ का माथा टेकना उन लाखों हिन्दू वीर योद्धाओं के साथ धौखा होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए, आज के हिंदुओं का गाज़ी के सामने सर झुकाना उन लाखों माँओं के साथ विश्वासघात होगा जिन माँओं ने गाज़ी को रोकने के लिए अपने लाल खोए, उन अर्धांगिनियों के साथ विश्वासघात होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ने के लिये अपना सिंदूर उजाड़ा, उन बहनों औऱ बच्चों के साथ धोखा होगा जिन्होंने ग़ाज़ी से लड़ने के लिये अपनी राखी तोड़ी अपने सिर का छत्र खोया, लाखों हिंदुओ को मारने वाले गाज़ी के सामने सर झुकाने से बेहतर मैं शमसान घाट की उन आत्मा के सामने सर झुकाना समझूँगा जिसनें अपने जीवन में किसी का क़त्ल नही किया हो"
किसी के सामने सर झुकाने से पहले उसके इतिहास और चरित्र को तो जान लो फिर उसे सम्मान दो, जो भारतभूमि में भारत को सम्मान नही देता और हिन्दू धर्म को सम्मान नही देता, मैं उनके सामने अपना सर नही झुकाता औऱ नाही हिंदुओं को उनके आगे सिर झुकाना चाहिये।।
अब सभी लोग शाँत थे तभी किरण भाभी (मेरे दोस्त की पत्नी जिनकी कल ही शादी हो कर आयी थी) ने कहा अशोक भैया आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी की सच्चाई बतायी, अब मैं अपने जीवन में कभी भी गाज़ी की दरगाह नही आऊँगी और नही कभी किसी को इस पिशाच की दरगाह पर आने दूँगी।।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में वापिस घर जाने लगे, मेरे दोस्त मुझसे पूछ रहे थे की भाई तू हिंदुत्व को लेकर इतनी टेंशन क्यों लेता है, मैंने भी कहा की ख़ुद को और धर्म को बचाने के लिए किसी ना किसी को तो आगे आना ही होगा सो मैं इस युद्ध में एक सिपाही हूँ जो अपनी अंतिम साँस तक धर्म के लिए लड़ेगा।
Ashok Sharma

राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
 08737866555
आप सभी भक्तों को श्री हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं।
संकट मोचन हनुमानजी की कृपा  सदा सभी पर बनी रहे।
जय श्रीराम, जय हनुमान!!
!!श्री सीताराम जी महाराज की जय!!

रविवार, 25 मार्च 2018

 रे साँवरे
 प्रीत लगाना प्रितम ऐसी
निभ जाए मरते दम तक
इसके सिवा न तुझसे मांगा 
न कुछ चाहा अब तक

राधे राधे जी 

   राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
      08737866555

शुक्रवार, 23 मार्च 2018

चार मित्र थे.. Fake ID में नाम हिन्दुओं के -
1 सोहराब    -          सुनील यादव
2 सरफराज       -       अमित मिश्रा
3 हामिद कुरैशी     -    नागेंद्र कुमार पासवान
4 अहमद         -         सुरेन्द्र सिंह         
अब सुनील यादव (सोहराब) पोस्ट डालता हैं कि - *धर्म के नाम पर ब्राह्मणों ने हमेशा हमारा शोषण किया है कोई देवी देवता नहीं होता हिन्दू धर्म सिर्फ ब्राह्मणों का बकवास है ये सब बीजेपी और आरएसएस वाला है।"*

अब शुरू होता है इस नाटक के बाकि तीनो किरदारों का तमाशा देखिए कमेंट बॉक्स में।

Comment
सुरेंद्र सिंह उर्फ (अहमद)-

"ऐ सुनील यादव खबरदार जो हिन्दू धर्म के बारे में कुछ बोला तुम यादव लोग हिन्दू नहीं हो सकते #$%2-4 गाली लिख देता है।"

फिर बारी आती है तीसरे नौटंकी बाज की-

*नागेंद्र पासवान उर्फ (हामिद)*

नमो बुद्धाय जय भीम।
"अरे भाईलोगों गाली गलौज क्यों कर रहे सच्चाई तो कड़वी होती ही है तुम लोग हम दलितों को मंदिर में घुसने नहीं देते हो ये धर्म नहीं पाखण्ड है इससे अच्छा तो इस्लाम है सभी बराबर खड़े हो कर नमाज पढ़ते हैं।"

*अब तीसरा नौटंकी बाज आता है कमेंट बॉक्स में-*

*अमित मिश्रा उर्फ (सरफ़राज़)*

"हाँ.. हाँ.. तुम लोग अछूत हो तो क्यों घुसने दे मंदिर में?? जाओ इस्लाम ही अपना लो तुम सब मूर्ख हो कौन मुंह लगाए तुझे।

-------------

मित्रों सिर्फ इन चार की इतनी सी नौटंकी जबकि चारो एक ही समुदाय के हैं।

मात्र इतनी नौटंकी के बाद कई हिन्दू यादव, राजपूत, ब्राह्मण और दलित सभी तुरंत इस कमेंट बॉक्स में अपनी-अपनी जाति के समर्थन में बिना सोचे-समझे बिना अगले किसी fake id को जाने समझे आपस में एक दूसरे से लड़ने लगते हैं और हमारे जातिवाद का फायदा उठाने वाले वो चारो हमारी मूर्खता पर अट्टहास लगा कर हँसते हैं।
देश के अंदर -बाहर से दुश्मन घात लगा कर बैठा है मौके की तलाश में, और इस प्रकार हिंदूओं में आपसी फूट डाल कर लड़ाते हैं।

*विचार करें-*

ऐसे लाखों सोहराब और सरफराज दिन रात सोशल मिडिया पर तुम सबको तोड़ने और लड़ाने के लिए काम कर रहे हैं।
ज़िहाद अपने चरम पर है हर स्तर से हिंदुत्व को क्षति पहुंचाने पर कार्य हो रहा है वो भी युद्धस्तर पर।

*इसे शेयर करें या काॅपी-पेस्ट, बस यह पोस्ट हर वाल पर होनी चाहिए....।*







   राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
     08737866555

बुधवार, 21 मार्च 2018

एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।
उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।

वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।

वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।

परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।

ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।

वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"

 बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।

दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।

 कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।

उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।

कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।

वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।

नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

 बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"

*'भारत' में रहकर 'भारत' को गाली देने वाले कुत्तों के लिए समर्पित।*




   राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
        08737866555


हम झूम रहे थे तेरी याद में

           ऐ कन्हैया

 लोगों ने सोचा  नशे में है हम⚡

               🌹जय श्री राधे 🌹



    राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
       08737866555

मंगलवार, 20 मार्च 2018



आसरा एक तुम्हारी कृपा का हमें भव सागर पार उतारो
मात दयाकर जान के दीन हमें जननी निज हाथ संवारो
डूबत जात है नाव मेरी कर दृष्टि दया की आन सँभारो
हे जननी दर तेरे पड़े करुणाकर एक ही बार निहारो



  राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
        08737866555

गुरुवार, 15 मार्च 2018

          ऐ साँवरिया 

गम ने हॅसने न दिया 
जमाने ने रोने न दिया 

इस उलझन ने चैन से जीने न दिया 
थक के जब सितारो से पनाह ली 

नींद आयी तो "कान्हा "
तेरी याद ने सोने न दिया 

          राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता 
    प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
 08737866555/ 094533162769

बुधवार, 14 मार्च 2018


*शबरी की  भक्ति !!*

शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी जब विवाह योग्य हुई तो इनके पिता ने एक भील कुमार से इनका विवाह पक्का किया. विवाह के दिन निकट आये. सैकडों बकरे-भैंसे बलिदान के लिये इकट्ठे किये गये.
शबरी ने पूछा- ये सब जानवर क्यों इकट्ठे किये गये हैं ? उत्तर मिला- तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में इन सबका बलिदान होगा.

भक्तिमती भोली बालिका सोचने लगी. यह कैसा विवाह जिसमें इतने प्राणियों का वध हो. इस विवाह से तो विवाह न करना ही अच्छा. ऐसा सोचकर वह रात्रि में उठकर जंगल में चली गयी और फिर लौटकर घर नहीं आयी.

शबरी जी पर गुरु कृपा - दण्डकारण्य में हजारों ऋषि-मुनि तपस्या करते थे, शबरी भीलनी जाति की थी, स्त्री थी, बालिका थी, अशिक्षिता थी. उसमें संसार की दृष्टि में भजन करने योग्य कोई गुण नहीं था. किन्तु उसके हृदय में प्रभु के लिये सच्ची चाह थी, जिसके होने से सभी गुण स्वत: ही आ जाते हैं. वे मुनि मतंग जी को अपना गुरु बनना चाहती थी पर उन्हें ये भी पता था कि भीलनी जाति कि होने पर वे उन्हें स्वीकार नहीं करेगे इसलिए वे गुरु सेवा में लग गई.

रात्रि में दो बजे उठती जिधर से ऋषि निकलते उस रास्ते को नदी तक साफ करती. कँकरीली जमीन में बालू बिछा आती. जंगल में जाकर लकडी काटकर हवन के लिए डाल आती. इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न लें. यह कार्य वह वर्षो तक करती रही. अन्त में मतंग ऋषि ने उस पर कृपा की और ब्रह्मलोक जाते समय उससे कह गये कि मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ. भगवान् स्वयं आकर तेरी कुटी पर ही तुझे दर्शन देंगे !
                  साधना का पथ -

शबरी जी का इंतजार शुरू हो गया. सुबह उठते ही शबरी सोचती-प्रभु आज अवश्य ही पधारेंगे. यह सोचकर जल्दी-जल्दी दूर तक रास्ते को बुहार आती, पानी से छिडकाव करती. गोबर से जमीन लीपती. जंगल में जाकर मीठे-मीठे फलों को लाती, ताजे-ताजे पत्तों के दोने बनाकर रखती. ठंडा जल खूब साफ करके रखती और माला लेकर रास्ते पर बैठ जाती.

 एकटक निहारती रहती. तनिक सी आहट पाते ही उठ खडी होती. बिना खाये-पीये सूर्योदय से सूर्यास्त तक बैठी रहती. जब अँधेरा हो जाता तो उठती, सोचती आज प्रभु किसी मुनि के आश्रम पर रह गये होंगे, कल जरूर आ जायँगे. बस, कल फिर इसी तरह बैठती और न आने पर कल के लिये पक्का विचार करती, ताजे फल लाती. इस प्रकार उसने बारह वर्ष बिता दिये.
              “कब दर्शन देंगे राम परम हितकारी,
               कब दर्शन देगे राम दीन हितकारी,
             रास्ता देखत शबरी की उम्र गई सारी”

गुरु के वचन असत्य तो हो नहीं सकते. आज नहीं तो कल जरूर आवेंगे इसी विचार से वह निराश कभी नहीं हुई. भगवान् सीधे शबरी के आश्रम पर पहुँचे. उन्होंने अन्य ऋषियों के आश्रमों की ओर देखा भी नहीं. शबरी के आनन्द का क्या ठिकाना ? वह चरणों में लोट-पोट हो गयी. नेत्र के अश्रुओं से पैर धोये, हृदय के सिंहासन पर भगवान् को बिठाया, भक्ति के उद्रेक में वह अपने आपको भूल गयी. सुन्दर-सुन्दर फल खिलाये और पंखा लेकर बैठ गयी. फिर शबरी ने स्तुति की,

भगवान् ने नवधा भक्ति बतलायी, और शबरी को नवधा भक्ति से युक्त बतलाकर उसे निहाल किया. फिर शबरी जी अपने गुरु लोक को गई !


  राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
 08737866555/ 9453316276

मंगलवार, 13 मार्च 2018

आप सभी का दिन मंगलमय हो आप सभी को मेरा प्रेम भरा राधे राधे



राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 08737866555

रविवार, 11 मार्च 2018


श्रीमद् भागवतम् स्कंद 3 अध्याय 24 श्लोक संख्या 13 तात्पर्य

  जिस प्रकार मनुष्य शरीर से आत्मा को पृथक नहीं कर सकता उसी प्रकार शिष्य अपने जीवन से गुरु आज्ञा को दूर नहीं कर सकता। यदि शिष्य इस प्रकार से गुरु उपदेश का पालन करता है, तो वे अवश्य सिद्ध बनेगा ।उपनिषदों में इसकी पुष्टि हुई है- जो लोग श्री भगवान तथा गुरु में श्रद्धा रखते हैं उन्हें वैदिक शिक्षा स्वतः प्राप्त हो जाती है ।कोई भौतिक दृष्टि से भले ही अनपढ़ हो किंतु यदि उसे गुरु के साथ ही साथ पुरुषोत्तम भगवान पर उसकी श्रद्धा है ,तो उसके समक्ष शास्त्रों का ज्ञान तुरंत प्रकट हो जाता है।

  राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
         08737866555

गुरुवार, 8 मार्च 2018

राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 08737866555

शनिवार, 3 मार्च 2018

आज बिरज में होली रे रसिया आज बिरज में होली है
 इंतज़ार में सखी मैं बैठी हूँ 
मेरे शाम पिया कब आएंगे
मन रंगा है उनके प्रेम में
होरी पे तन भी रंग जाएंगे 

चहूँ ओर में शोर मचा है
गवाल बाल सब रंगे खड़े हैं
मेरे तन पर इक छींट डाल दो
तेरी राह में हम भी पड़े हैं

भौर भई तो जाग उठी मैं
द्वार की ओर भाग उठी मैं
रंग गुलाल चहूँ और पड़ा है
मेरा दिल अकेला खड़ा है

काश कहीं से तुम आ जाओ
चुपके से मेरी आँख दबाओ 
पहचान लूँ तुमको क्षण में
राज दबाए रखूं यह मन मे

कौन कौन की रट लगाऊं
मन मे हरि हरि जप जाऊं
जिस पल तुम यह जान गए
मैने पहचान लिया मान गए

आंख छोड़ परे हो जाओगे 
दूर से मुझ पर मुस्काओगे
झूठ जो तेरे समीप लाता है
सच से भी सच्चा कहलाता है

नयन मुंदे हैं नासिका खुली है
चंदन महक सब ओर घुली है
कटि बंधी बांसुरी कटि पहचाने
कंगन के नूपुर मोको लगे बताने 

सांवरे की बलिष्ठ बुजा का जोर
पहचाने मेरे मन का चोर
अनियंत्रित से श्वास बता रहे 
दौड़ कर तुम कहीं से आ रहे 

तपते तेज़ बिखरे से श्वास
छू रहे कपोल बन कर आस 
हर बिखरी श्वास बहकाये रही है
तन मन को महकाये रही है

ऐसे अद्भुत क्षण को कैसे खो दूं
क्यूं ना कुछ पल बेसुध हो लूँ 

मैं बेसुध भी सुध में कहलाऊँ
छोड़ छोड़ दो कहती जाऊँ
छुड़वाने का जो प्रयास करूं 
ओर जकड़ लोगे आस करूं

कर से टटोलूँ तुम्हारा चेहरा
हाथ में आये मोरपंख सेहरा
छोड़ मैं आगे बढ़ जाऊं 
पगड़ी ढीली कुछ कर जाऊं

कान का कुंडल छूने के बहाने
कान खींच तोहे मज़ा चखाऊँ
कर टकराये वैजंती माला से
कोमल पुष्पों को और दबाऊं

फिर कोमल कपोल तुम्हारे छू
नयनों पे कर में ले जाऊं 
मृग नयनों की लंबी पलकें छू
आनन्द सागर के गोते खाऊं

नासिका जो मुझे महकाये रही 
झूलता उसका मोती छू लूँ 
कमल पाँखुड़ी से अधखुले अधर
उंगलियों से छू ही रस पी लूँ

मदिरा से भरे दो कलशों से
अधरों को छू 
हाय मैं बहक गई
श्याम श्याम मेरे श्याम श्याम 
मदहोश पगली 
है मैं कह गई 

पहचान लिया 
पहचान लिया
गोपालों ने शोर मचाया
खींच ले गए साजन को
बेसुध तन रोक ना पाया

ठगी रह गयी 
लुटी पिट्टी सी
जड़ हो गई
मूरत मिट्टी की

उस पल को सखी कोसूं
बेसुधी में पी का नाम लिया
जिस नाम को श्वास श्वास जपूँ
उस नाम ने बंटाधार किया 

रंगने को आतुर मन मेरा
रंगने से चूक गया तन मेरा
दर्पण से दर्द कहने गई
सूरत देख दंग रह गई

लाल गुलाबी केसरी पीला
हरा जामुनी सन्तरी नीला
इंद्रधनुष तन पे उतर आया
श्याम पिया मोहे खूब छकाया


किसी लोक की चाह नही 
बस नयनों में बसा लो पिया
प्रभु ,प्रभु  मोसे बोलो ना जाए
जिया कहे बस पिया पिया

होरी के रसिया पिया प्रीतम की जय हो ।।।