गुरुवार, 22 मार्च 2018
बुधवार, 21 मार्च 2018
एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।
उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।
वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।
मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।
वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।
परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।
ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।
नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।
वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"
बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।
दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।
कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।
उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।
कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।
वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।
नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।
बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"
दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"
*'भारत' में रहकर 'भारत' को गाली देने वाले कुत्तों के लिए समर्पित।*
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555
उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।
कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।
वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।
मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।
वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।
परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।
ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।
नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।
वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"
बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।
दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।
कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।
उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।
कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।
वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।
नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।
बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"
दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"
*'भारत' में रहकर 'भारत' को गाली देने वाले कुत्तों के लिए समर्पित।*
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555
मंगलवार, 20 मार्च 2018
गुरुवार, 15 मार्च 2018
बुधवार, 14 मार्च 2018
*शबरी की भक्ति !!*
शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी जब विवाह योग्य हुई तो इनके पिता ने एक भील कुमार से इनका विवाह पक्का किया. विवाह के दिन निकट आये. सैकडों बकरे-भैंसे बलिदान के लिये इकट्ठे किये गये.
शबरी ने पूछा- ये सब जानवर क्यों इकट्ठे किये गये हैं ? उत्तर मिला- तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में इन सबका बलिदान होगा.
भक्तिमती भोली बालिका सोचने लगी. यह कैसा विवाह जिसमें इतने प्राणियों का वध हो. इस विवाह से तो विवाह न करना ही अच्छा. ऐसा सोचकर वह रात्रि में उठकर जंगल में चली गयी और फिर लौटकर घर नहीं आयी.
शबरी जी पर गुरु कृपा - दण्डकारण्य में हजारों ऋषि-मुनि तपस्या करते थे, शबरी भीलनी जाति की थी, स्त्री थी, बालिका थी, अशिक्षिता थी. उसमें संसार की दृष्टि में भजन करने योग्य कोई गुण नहीं था. किन्तु उसके हृदय में प्रभु के लिये सच्ची चाह थी, जिसके होने से सभी गुण स्वत: ही आ जाते हैं. वे मुनि मतंग जी को अपना गुरु बनना चाहती थी पर उन्हें ये भी पता था कि भीलनी जाति कि होने पर वे उन्हें स्वीकार नहीं करेगे इसलिए वे गुरु सेवा में लग गई.
रात्रि में दो बजे उठती जिधर से ऋषि निकलते उस रास्ते को नदी तक साफ करती. कँकरीली जमीन में बालू बिछा आती. जंगल में जाकर लकडी काटकर हवन के लिए डाल आती. इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न लें. यह कार्य वह वर्षो तक करती रही. अन्त में मतंग ऋषि ने उस पर कृपा की और ब्रह्मलोक जाते समय उससे कह गये कि मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ. भगवान् स्वयं आकर तेरी कुटी पर ही तुझे दर्शन देंगे !
साधना का पथ -
शबरी जी का इंतजार शुरू हो गया. सुबह उठते ही शबरी सोचती-प्रभु आज अवश्य ही पधारेंगे. यह सोचकर जल्दी-जल्दी दूर तक रास्ते को बुहार आती, पानी से छिडकाव करती. गोबर से जमीन लीपती. जंगल में जाकर मीठे-मीठे फलों को लाती, ताजे-ताजे पत्तों के दोने बनाकर रखती. ठंडा जल खूब साफ करके रखती और माला लेकर रास्ते पर बैठ जाती.
एकटक निहारती रहती. तनिक सी आहट पाते ही उठ खडी होती. बिना खाये-पीये सूर्योदय से सूर्यास्त तक बैठी रहती. जब अँधेरा हो जाता तो उठती, सोचती आज प्रभु किसी मुनि के आश्रम पर रह गये होंगे, कल जरूर आ जायँगे. बस, कल फिर इसी तरह बैठती और न आने पर कल के लिये पक्का विचार करती, ताजे फल लाती. इस प्रकार उसने बारह वर्ष बिता दिये.
“कब दर्शन देंगे राम परम हितकारी,
कब दर्शन देगे राम दीन हितकारी,
रास्ता देखत शबरी की उम्र गई सारी”
गुरु के वचन असत्य तो हो नहीं सकते. आज नहीं तो कल जरूर आवेंगे इसी विचार से वह निराश कभी नहीं हुई. भगवान् सीधे शबरी के आश्रम पर पहुँचे. उन्होंने अन्य ऋषियों के आश्रमों की ओर देखा भी नहीं. शबरी के आनन्द का क्या ठिकाना ? वह चरणों में लोट-पोट हो गयी. नेत्र के अश्रुओं से पैर धोये, हृदय के सिंहासन पर भगवान् को बिठाया, भक्ति के उद्रेक में वह अपने आपको भूल गयी. सुन्दर-सुन्दर फल खिलाये और पंखा लेकर बैठ गयी. फिर शबरी ने स्तुति की,
भगवान् ने नवधा भक्ति बतलायी, और शबरी को नवधा भक्ति से युक्त बतलाकर उसे निहाल किया. फिर शबरी जी अपने गुरु लोक को गई !
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555/ 9453316276
मंगलवार, 13 मार्च 2018
रविवार, 11 मार्च 2018
श्रीमद् भागवतम् स्कंद 3 अध्याय 24 श्लोक संख्या 13 तात्पर्य
जिस प्रकार मनुष्य शरीर से आत्मा को पृथक नहीं कर सकता उसी प्रकार शिष्य अपने जीवन से गुरु आज्ञा को दूर नहीं कर सकता। यदि शिष्य इस प्रकार से गुरु उपदेश का पालन करता है, तो वे अवश्य सिद्ध बनेगा ।उपनिषदों में इसकी पुष्टि हुई है- जो लोग श्री भगवान तथा गुरु में श्रद्धा रखते हैं उन्हें वैदिक शिक्षा स्वतः प्राप्त हो जाती है ।कोई भौतिक दृष्टि से भले ही अनपढ़ हो किंतु यदि उसे गुरु के साथ ही साथ पुरुषोत्तम भगवान पर उसकी श्रद्धा है ,तो उसके समक्ष शास्त्रों का ज्ञान तुरंत प्रकट हो जाता है।
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555
बुधवार, 7 मार्च 2018
शनिवार, 3 मार्च 2018
आज बिरज में होली रे रसिया आज बिरज में होली है
इंतज़ार में सखी मैं बैठी हूँ
मेरे शाम पिया कब आएंगे
मन रंगा है उनके प्रेम में
होरी पे तन भी रंग जाएंगे
चहूँ ओर में शोर मचा है
गवाल बाल सब रंगे खड़े हैं
मेरे तन पर इक छींट डाल दो
तेरी राह में हम भी पड़े हैं
भौर भई तो जाग उठी मैं
द्वार की ओर भाग उठी मैं
रंग गुलाल चहूँ और पड़ा है
मेरा दिल अकेला खड़ा है
काश कहीं से तुम आ जाओ
चुपके से मेरी आँख दबाओ
पहचान लूँ तुमको क्षण में
राज दबाए रखूं यह मन मे
कौन कौन की रट लगाऊं
मन मे हरि हरि जप जाऊं
जिस पल तुम यह जान गए
मैने पहचान लिया मान गए
आंख छोड़ परे हो जाओगे
दूर से मुझ पर मुस्काओगे
झूठ जो तेरे समीप लाता है
सच से भी सच्चा कहलाता है
नयन मुंदे हैं नासिका खुली है
चंदन महक सब ओर घुली है
कटि बंधी बांसुरी कटि पहचाने
कंगन के नूपुर मोको लगे बताने
सांवरे की बलिष्ठ बुजा का जोर
पहचाने मेरे मन का चोर
अनियंत्रित से श्वास बता रहे
दौड़ कर तुम कहीं से आ रहे
तपते तेज़ बिखरे से श्वास
छू रहे कपोल बन कर आस
हर बिखरी श्वास बहकाये रही है
तन मन को महकाये रही है
ऐसे अद्भुत क्षण को कैसे खो दूं
क्यूं ना कुछ पल बेसुध हो लूँ
मैं बेसुध भी सुध में कहलाऊँ
छोड़ छोड़ दो कहती जाऊँ
छुड़वाने का जो प्रयास करूं
ओर जकड़ लोगे आस करूं
कर से टटोलूँ तुम्हारा चेहरा
हाथ में आये मोरपंख सेहरा
छोड़ मैं आगे बढ़ जाऊं
पगड़ी ढीली कुछ कर जाऊं
कान का कुंडल छूने के बहाने
कान खींच तोहे मज़ा चखाऊँ
कर टकराये वैजंती माला से
कोमल पुष्पों को और दबाऊं
फिर कोमल कपोल तुम्हारे छू
नयनों पे कर में ले जाऊं
मृग नयनों की लंबी पलकें छू
आनन्द सागर के गोते खाऊं
नासिका जो मुझे महकाये रही
झूलता उसका मोती छू लूँ
कमल पाँखुड़ी से अधखुले अधर
उंगलियों से छू ही रस पी लूँ
मदिरा से भरे दो कलशों से
अधरों को छू
हाय मैं बहक गई
श्याम श्याम मेरे श्याम श्याम
मदहोश पगली
है मैं कह गई
पहचान लिया
पहचान लिया
गोपालों ने शोर मचाया
खींच ले गए साजन को
बेसुध तन रोक ना पाया
ठगी रह गयी
लुटी पिट्टी सी
जड़ हो गई
मूरत मिट्टी की
उस पल को सखी कोसूं
बेसुधी में पी का नाम लिया
जिस नाम को श्वास श्वास जपूँ
उस नाम ने बंटाधार किया
रंगने को आतुर मन मेरा
रंगने से चूक गया तन मेरा
दर्पण से दर्द कहने गई
सूरत देख दंग रह गई
लाल गुलाबी केसरी पीला
हरा जामुनी सन्तरी नीला
इंद्रधनुष तन पे उतर आया
श्याम पिया मोहे खूब छकाया
किसी लोक की चाह नही
बस नयनों में बसा लो पिया
प्रभु ,प्रभु मोसे बोलो ना जाए
जिया कहे बस पिया पिया
होरी के रसिया पिया प्रीतम की जय हो ।।।
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