अभी दिसम्बर में एक दोस्त की शादी अटेंड करने के लिए मैं बहराईच गया था, शादी 24 दिसम्बर की थी मैं और मेरे कुछ दोस्त 23 को बहराइच पहुँच गए।
चूँकि शादी का माहौल था सभी लोग काम काज में बिज़ी थे, और कुछ लोग अपने नाच गानों में व्यस्त थे सो किसी को हमें बहराइच घूमाने का समय नही मिला।
24 को बारात अटेंड की ख़ूब डांस मौज मस्ती हुई ,
अगले दिन हम सभी वापस आने के लिए पैकिंग कर रहे थे, तभी मेरे दोस्त के पिताजी ने कहा बेटा कुछ दिन और रुक जाते अभी तो आपने बहराइच भी नही घुमा है, कल हम सभी बहु को लेकर "गाज़ी बाबा" की दरगाह पर जायेंगे आप लोग भी चलो, आप लोग बहराइच तक आये हो तो कम से कम गाज़ी बाबा की दरगाह तो देखकर ही जाओ,
चूँकि मेरे दोस्तों ने तो मना किया की और कहा 'अंकल हम फिर कभी आएंगे बहराईच तब गाज़ी बाबा की दरगाह घूम कर जायेंगे, अभी हमें जाना होगा'
लेकिन मैने अंकल से कहा की हम सभी कल आप लोगों के साथ जाएँगे।
मैंने दोस्तों को समझाया एक दिन रुकने के लिये वो भी मान गये।
" रात में कई बार सोचा की इन सभी को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाऊँ लेकिन फिर दिमाग़ में वोही बातें अटैक करने लगीं की हिंदुओ को इतनी आसानी से समझ में कहाँ आता है, अगर इतनी ही आसानी से हिन्दू समझ जाते तो हिन्दू 1200 साल ग़ुलाम कैसे रहते,"
अगले दिन सुबह मैने उन लोगों को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाने की हल्की सी कोशिश की, और यह जानने की कोशिश की उन लोगों की उस मज़ार से क्या आस्था है लेकिन वो हिन्दू परिवार बहुत ही सहष्णु और सेक्युलर वादी था, उनके अनुसार वो दरगाह हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक था।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर जा रहे थे,
मै थोड़ा उदास भी था क्योंकि मुझे ये देखकर दुःख हो रहा था की हिंदू इतना मूर्ख कैसे हो सकता है जो निरंतर मुस्लिमों के चँगुल में फँसता ही चला जा रहा हो, जो इनके स्लो पोइजन सूफिज्म के फ़ैलाये जाल से बाहर निकलने की कोशिश भी नही करता, आज हिन्दू जिस गाज़ी की पूजा कर रहा है, वह हिन्दू उस ग़ाज़ी के इतिहास को जानने की कोशिस भी नही करता।
दरगाह से काफ़ी दूरी पहले ही गाड़ियाँ रोक दी गयीं सभी लोग दरगाह जाने लगे, वहाँ जाकर पता चला की कितने हिन्दू आज भी अंध विश्वासी बन मज़ारों पर माथा टेक रहे हैं कुछ महंगी महँगी चादर चढ़ा रहे हैं और मन्नतें माँग रहे हैं,
लेकिन वो हिन्दू ये नही जानते की जिसने जिन्दा रहते हुए केवल इस्लाम का परचम फ़ैलाने के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें कैसे पूरी कर सकता है।
अब हम सभी वापिस आ रहे थे की रास्ते में एक शमसान घाट मिला मैंने अपनी गाड़ी शमसान घाट पर रोक दी और मैं माथा टेकते हुए शमसान घाट के अंदर गया अब मैंने सभी लोगों को बुलाया लेकिन कोई भी शमसान घाट में आने को तैयार नही फिर मैंने अंकल को बोला की अंकल जी प्लीज् अंदर आओ, आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ, अब अंकल जी बोले बेटा अगर शमसान घाट के अंदर आऊँगा तो फिर जाकर नहाना पड़ेगा और यहाँ भूत रहते हैं।
मैंने कहा अंकल जी आप को नहाना तो वैसे भी पड़ेगा क्योंकि आप ऑलरेडी एक शमसान घाट होकर आये हो और कब्र में लेटे हुए भूत से मन्नतें माँग कर आये हो।
आप आओ तो सही आपको कुछ बताना चाहता हूँ, अब मुँह लटका के एक एक करके सभी लोग शमसान घाट के अंदर आ गए,
अब मैंने बोलना शुरू किया की अंकल आप बताओ "क्या कोई मुस्लिम जिसनें इस्लाम के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो, क्या वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें पूरी करेगा"
वो बोले "नही करेगा कभी नही करेगा, जब जिंदा रहते हुए हिंदुओं से इतनी नफ़रत थी तो वो मरने के बाद कैसे हिंदुओं की मनोकामनाएं पूरी करेगा, वो ऐसा कतई नही करेगा"
अब मैंने उनसे पूछा क्या आप जानते हो की सैयद सालार गाज़ी कौन था ??
उस कब्र का इतिहास क्या है, ग़ाज़ी का अर्थ क्या है??
तो सुनों
आप सभी महमूद गज़नवी (गज़नी) के बारे में तो जानते ही होंगे, वही मुस्लिम आक्रांता जिसने सोमनाथ पर 16 बार हमला किया और भारी मात्रा में सोना हीरे-जवाहरात आदि लूट कर ले गया था। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आखिरी बार सन् 1024 में हमला किया था तथा उसने व्यक्तिगत रूप से सामने खड़े होकर शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े किये और उन टुकड़ों को अफ़गानिस्तान के गज़नी शहर की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में सन् 1026 में लगवाया, जिसके प्रमाण भी मिल चुके हैं।
इसी लुटेरे महमूद गजनवी का ही भांजा था सैयद सालार मसूद उर्फ़ आपका गाज़ी बाबा, यह बड़ी भारी सेना लेकर सन् 1031 में भारत आया। सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा एक सनकी किस्म का धर्मान्ध इस्लामिक आक्रान्ता था। महमूद गजनवी तो सिर्फ़ लूटने के लिये भारत आता था, लेकिन सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा भारत में विशाल सेना लेकर आया था उसका मक़सद भारतभूमि को “दारुल-इस्लाम” बनाकर रहना था, और इस्लाम का प्रचार पूरे भारत में करना था जाहिर है कि तलवार के बल पर।
सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया। एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद ही युद्ध था जो भारत को इस्लामिक मुल्क़ बनाने के लिए हुआ था। सैयद सालार मसूद सिर्फ़ लूटने की नीयत से भारत नही आया था बल्कि बसने राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर भारत आया था।
पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई।
सालार मसूद ग़ाज़ी के इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये लेकिन सालार मसूद ने माँग ठुकरा दी उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी।
इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है।
उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया, बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
जब फ़िरोज़शाह तुगलक बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था।
फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने ग़ाज़ी बाबा की दरग़ाह पर आना अनिवार्य कर दिया, उस समय हिन्दू अपनी मौत के डर से न चाहते हुए भी इस दरग़ाह पर आते थे, दरगाह पर आना उनकी मज़बूरी बन चुकी थी।
लेक़िन अब आज के समय इस इस्लामिक आक्रांता के आगे आप सभी माथा टेकते हो "जिसने अपने जीवित रहते हुए लाखों हिंदुओ को मारा हो उस सालार ग़ाज़ी की क़ब्र के सामने आप जैसे हिंदुओ का माथा टेकना उन लाखों हिन्दू वीर योद्धाओं के साथ धौखा होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए, आज के हिंदुओं का गाज़ी के सामने सर झुकाना उन लाखों माँओं के साथ विश्वासघात होगा जिन माँओं ने गाज़ी को रोकने के लिए अपने लाल खोए, उन अर्धांगिनियों के साथ विश्वासघात होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ने के लिये अपना सिंदूर उजाड़ा, उन बहनों औऱ बच्चों के साथ धोखा होगा जिन्होंने ग़ाज़ी से लड़ने के लिये अपनी राखी तोड़ी अपने सिर का छत्र खोया, लाखों हिंदुओ को मारने वाले गाज़ी के सामने सर झुकाने से बेहतर मैं शमसान घाट की उन आत्मा के सामने सर झुकाना समझूँगा जिसनें अपने जीवन में किसी का क़त्ल नही किया हो"
किसी के सामने सर झुकाने से पहले उसके इतिहास और चरित्र को तो जान लो फिर उसे सम्मान दो, जो भारतभूमि में भारत को सम्मान नही देता और हिन्दू धर्म को सम्मान नही देता, मैं उनके सामने अपना सर नही झुकाता औऱ नाही हिंदुओं को उनके आगे सिर झुकाना चाहिये।।
अब सभी लोग शाँत थे तभी किरण भाभी (मेरे दोस्त की पत्नी जिनकी कल ही शादी हो कर आयी थी) ने कहा अशोक भैया आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी की सच्चाई बतायी, अब मैं अपने जीवन में कभी भी गाज़ी की दरगाह नही आऊँगी और नही कभी किसी को इस पिशाच की दरगाह पर आने दूँगी।।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में वापिस घर जाने लगे, मेरे दोस्त मुझसे पूछ रहे थे की भाई तू हिंदुत्व को लेकर इतनी टेंशन क्यों लेता है, मैंने भी कहा की ख़ुद को और धर्म को बचाने के लिए किसी ना किसी को तो आगे आना ही होगा सो मैं इस युद्ध में एक सिपाही हूँ जो अपनी अंतिम साँस तक धर्म के लिए लड़ेगा।
Ashok Sharma
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555
चूँकि शादी का माहौल था सभी लोग काम काज में बिज़ी थे, और कुछ लोग अपने नाच गानों में व्यस्त थे सो किसी को हमें बहराइच घूमाने का समय नही मिला।
24 को बारात अटेंड की ख़ूब डांस मौज मस्ती हुई ,
अगले दिन हम सभी वापस आने के लिए पैकिंग कर रहे थे, तभी मेरे दोस्त के पिताजी ने कहा बेटा कुछ दिन और रुक जाते अभी तो आपने बहराइच भी नही घुमा है, कल हम सभी बहु को लेकर "गाज़ी बाबा" की दरगाह पर जायेंगे आप लोग भी चलो, आप लोग बहराइच तक आये हो तो कम से कम गाज़ी बाबा की दरगाह तो देखकर ही जाओ,
चूँकि मेरे दोस्तों ने तो मना किया की और कहा 'अंकल हम फिर कभी आएंगे बहराईच तब गाज़ी बाबा की दरगाह घूम कर जायेंगे, अभी हमें जाना होगा'
लेकिन मैने अंकल से कहा की हम सभी कल आप लोगों के साथ जाएँगे।
मैंने दोस्तों को समझाया एक दिन रुकने के लिये वो भी मान गये।
" रात में कई बार सोचा की इन सभी को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाऊँ लेकिन फिर दिमाग़ में वोही बातें अटैक करने लगीं की हिंदुओ को इतनी आसानी से समझ में कहाँ आता है, अगर इतनी ही आसानी से हिन्दू समझ जाते तो हिन्दू 1200 साल ग़ुलाम कैसे रहते,"
अगले दिन सुबह मैने उन लोगों को सैयद सालार गाज़ी की सच्चाई समझाने की हल्की सी कोशिश की, और यह जानने की कोशिश की उन लोगों की उस मज़ार से क्या आस्था है लेकिन वो हिन्दू परिवार बहुत ही सहष्णु और सेक्युलर वादी था, उनके अनुसार वो दरगाह हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक था।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर जा रहे थे,
मै थोड़ा उदास भी था क्योंकि मुझे ये देखकर दुःख हो रहा था की हिंदू इतना मूर्ख कैसे हो सकता है जो निरंतर मुस्लिमों के चँगुल में फँसता ही चला जा रहा हो, जो इनके स्लो पोइजन सूफिज्म के फ़ैलाये जाल से बाहर निकलने की कोशिश भी नही करता, आज हिन्दू जिस गाज़ी की पूजा कर रहा है, वह हिन्दू उस ग़ाज़ी के इतिहास को जानने की कोशिस भी नही करता।
दरगाह से काफ़ी दूरी पहले ही गाड़ियाँ रोक दी गयीं सभी लोग दरगाह जाने लगे, वहाँ जाकर पता चला की कितने हिन्दू आज भी अंध विश्वासी बन मज़ारों पर माथा टेक रहे हैं कुछ महंगी महँगी चादर चढ़ा रहे हैं और मन्नतें माँग रहे हैं,
लेकिन वो हिन्दू ये नही जानते की जिसने जिन्दा रहते हुए केवल इस्लाम का परचम फ़ैलाने के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें कैसे पूरी कर सकता है।
अब हम सभी वापिस आ रहे थे की रास्ते में एक शमसान घाट मिला मैंने अपनी गाड़ी शमसान घाट पर रोक दी और मैं माथा टेकते हुए शमसान घाट के अंदर गया अब मैंने सभी लोगों को बुलाया लेकिन कोई भी शमसान घाट में आने को तैयार नही फिर मैंने अंकल को बोला की अंकल जी प्लीज् अंदर आओ, आप सभी को कुछ बताना चाहता हूँ, अब अंकल जी बोले बेटा अगर शमसान घाट के अंदर आऊँगा तो फिर जाकर नहाना पड़ेगा और यहाँ भूत रहते हैं।
मैंने कहा अंकल जी आप को नहाना तो वैसे भी पड़ेगा क्योंकि आप ऑलरेडी एक शमसान घाट होकर आये हो और कब्र में लेटे हुए भूत से मन्नतें माँग कर आये हो।
आप आओ तो सही आपको कुछ बताना चाहता हूँ, अब मुँह लटका के एक एक करके सभी लोग शमसान घाट के अंदर आ गए,
अब मैंने बोलना शुरू किया की अंकल आप बताओ "क्या कोई मुस्लिम जिसनें इस्लाम के लिए लाखों हिंदुओ का क़त्ल किया हो, क्या वो मरने के बाद हिंदुओ की मन्नतें पूरी करेगा"
वो बोले "नही करेगा कभी नही करेगा, जब जिंदा रहते हुए हिंदुओं से इतनी नफ़रत थी तो वो मरने के बाद कैसे हिंदुओं की मनोकामनाएं पूरी करेगा, वो ऐसा कतई नही करेगा"
अब मैंने उनसे पूछा क्या आप जानते हो की सैयद सालार गाज़ी कौन था ??
उस कब्र का इतिहास क्या है, ग़ाज़ी का अर्थ क्या है??
तो सुनों
आप सभी महमूद गज़नवी (गज़नी) के बारे में तो जानते ही होंगे, वही मुस्लिम आक्रांता जिसने सोमनाथ पर 16 बार हमला किया और भारी मात्रा में सोना हीरे-जवाहरात आदि लूट कर ले गया था। महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर आखिरी बार सन् 1024 में हमला किया था तथा उसने व्यक्तिगत रूप से सामने खड़े होकर शिवलिंग के टुकड़े-टुकड़े किये और उन टुकड़ों को अफ़गानिस्तान के गज़नी शहर की जामा मस्जिद की सीढ़ियों में सन् 1026 में लगवाया, जिसके प्रमाण भी मिल चुके हैं।
इसी लुटेरे महमूद गजनवी का ही भांजा था सैयद सालार मसूद उर्फ़ आपका गाज़ी बाबा, यह बड़ी भारी सेना लेकर सन् 1031 में भारत आया। सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा एक सनकी किस्म का धर्मान्ध इस्लामिक आक्रान्ता था। महमूद गजनवी तो सिर्फ़ लूटने के लिये भारत आता था, लेकिन सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी बाबा भारत में विशाल सेना लेकर आया था उसका मक़सद भारतभूमि को “दारुल-इस्लाम” बनाकर रहना था, और इस्लाम का प्रचार पूरे भारत में करना था जाहिर है कि तलवार के बल पर।
सैयद सालार मसूद अपनी सेना को लेकर “हिन्दुकुश” पर्वतमाला को पार करके पाकिस्तान (आज के) के पंजाब में पहुँचा, जहाँ उसे पहले हिन्दू राजा आनन्द पाल शाही का सामना करना पड़ा, जिसका उसने आसानी से सफ़ाया कर दिया। मसूद के बढ़ते कदमों को रोकने के लिये सियालकोट के राजा अर्जन सिंह ने भी आनन्द पाल की मदद की लेकिन इतनी विशाल सेना के आगे वे बेबस रहे। मसूद धीरे-धीरे आगे बढ़ते-बढ़ते राजपूताना और मालवा प्रांत में पहुँचा, जहाँ राजा महिपाल तोमर से उसका मुकाबला हुआ, और उसे भी मसूद ने अपनी सैनिक ताकत से हराया। एक तरह से यह भारत के विरुद्ध पहला जेहाद ही युद्ध था जो भारत को इस्लामिक मुल्क़ बनाने के लिए हुआ था। सैयद सालार मसूद सिर्फ़ लूटने की नीयत से भारत नही आया था बल्कि बसने राज्य करने और इस्लाम को फ़ैलाने का उद्देश्य लेकर भारत आया था।
पंजाब से लेकर उत्तरप्रदेश के गांगेय इलाके को रौंदते, लूटते, हत्यायें-बलात्कार करते सैयद सालार मसूद अयोध्या के नज़दीक स्थित बहराइच पहुँचा, जहाँ उसका इरादा एक सेना की छावनी और राजधानी बनाने का था। इस दौरान इस्लाम के प्रति उसकी सेवाओं को देखते हुए उसे “गाज़ी बाबा” की उपाधि दी गई।
सालार मसूद ग़ाज़ी के इस्लामी खतरे को देखते हुए पहली बार भारत के उत्तरी इलाके के हिन्दू राजाओं ने एक विशाल गठबन्धन बनाया, जिसमें 17 राजा सेना सहित शामिल हुए और उनकी संगठित संख्या सैयद सालार मसूद की विशाल सेना से भी ज्यादा हो गई। जैसी कि हिन्दुओ की परम्परा रही है, सभी राजाओं के इस गठबन्धन ने सालार मसूद के पास संदेश भिजवाया कि यह पवित्र धरती हमारी है और वह अपनी सेना के साथ चुपचाप भारत छोड़कर निकल जाये लेकिन सालार मसूद ने माँग ठुकरा दी उसके बाद ऐतिहासिक बहराइच का युद्ध हुआ, जिसमें संगठित हिन्दुओं की सेना ने सैयद मसूद की सेना को धूल चटा दी।
इस भयानक युद्ध के बारे में इस्लामी विद्वान शेख अब्दुर रहमान चिश्ती की पुस्तक मीर-उल-मसूरी में विस्तार से वर्णन किया गया है।
उन्होंने लिखा है कि मसूद सन् 1033 में बहराइच पहुँचा, तब तक हिन्दू राजा संगठित होना शुरु हो चुके थे। यह भीषण रक्तपात वाला युद्ध मई-जून 1033 में लड़ा गया। युद्ध इतना भीषण था कि सैयद सालार मसूद के किसी भी सैनिक को जीवित नहीं जाने दिया गया, यहाँ तक कि युद्ध बंदियों को भी मार डाला गया… मसूद का समूचे भारत को इस्लामी रंग में रंगने का सपना अधूरा ही रह गया, बहराइच का यह युद्ध 14 जून 1033 को समाप्त हुआ।
जब फ़िरोज़शाह तुगलक बहराइच आया और मसूद के बारे में जानकारी पाकर वह बहुत प्रभावित हुआ और उसने उसकी कब्र को एक विशाल दरगाह और गुम्बज का रूप देकर सैयद सालार मसूद को “एक धर्मात्मा” के रूप में प्रचारित करना शुरु किया, एक ऐसा इस्लामी धर्मात्मा जो भारत में इस्लाम का प्रचार करने आया था।
फ़िरोजशाह तुग़लक़ ने ग़ाज़ी बाबा की दरग़ाह पर आना अनिवार्य कर दिया, उस समय हिन्दू अपनी मौत के डर से न चाहते हुए भी इस दरग़ाह पर आते थे, दरगाह पर आना उनकी मज़बूरी बन चुकी थी।
लेक़िन अब आज के समय इस इस्लामिक आक्रांता के आगे आप सभी माथा टेकते हो "जिसने अपने जीवित रहते हुए लाखों हिंदुओ को मारा हो उस सालार ग़ाज़ी की क़ब्र के सामने आप जैसे हिंदुओ का माथा टेकना उन लाखों हिन्दू वीर योद्धाओं के साथ धौखा होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए, आज के हिंदुओं का गाज़ी के सामने सर झुकाना उन लाखों माँओं के साथ विश्वासघात होगा जिन माँओं ने गाज़ी को रोकने के लिए अपने लाल खोए, उन अर्धांगिनियों के साथ विश्वासघात होगा जिन्होंने उस गाज़ी से लड़ने के लिये अपना सिंदूर उजाड़ा, उन बहनों औऱ बच्चों के साथ धोखा होगा जिन्होंने ग़ाज़ी से लड़ने के लिये अपनी राखी तोड़ी अपने सिर का छत्र खोया, लाखों हिंदुओ को मारने वाले गाज़ी के सामने सर झुकाने से बेहतर मैं शमसान घाट की उन आत्मा के सामने सर झुकाना समझूँगा जिसनें अपने जीवन में किसी का क़त्ल नही किया हो"
किसी के सामने सर झुकाने से पहले उसके इतिहास और चरित्र को तो जान लो फिर उसे सम्मान दो, जो भारतभूमि में भारत को सम्मान नही देता और हिन्दू धर्म को सम्मान नही देता, मैं उनके सामने अपना सर नही झुकाता औऱ नाही हिंदुओं को उनके आगे सिर झुकाना चाहिये।।
अब सभी लोग शाँत थे तभी किरण भाभी (मेरे दोस्त की पत्नी जिनकी कल ही शादी हो कर आयी थी) ने कहा अशोक भैया आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने सैयद सालार मसूद उर्फ़ गाज़ी की सच्चाई बतायी, अब मैं अपने जीवन में कभी भी गाज़ी की दरगाह नही आऊँगी और नही कभी किसी को इस पिशाच की दरगाह पर आने दूँगी।।
अब हम सभी अपनी अपनी गाड़ियों में वापिस घर जाने लगे, मेरे दोस्त मुझसे पूछ रहे थे की भाई तू हिंदुत्व को लेकर इतनी टेंशन क्यों लेता है, मैंने भी कहा की ख़ुद को और धर्म को बचाने के लिए किसी ना किसी को तो आगे आना ही होगा सो मैं इस युद्ध में एक सिपाही हूँ जो अपनी अंतिम साँस तक धर्म के लिए लड़ेगा।
Ashok Sharma
राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
08737866555
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