श्री ब्रम्हदेव जब सृष्टि की रचना कर रहे थे उससे पहले उन्होंनेने भगवान श्री नारायण की तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर नारायण ने उन्हें दर्शन दिया ।श्री ब्रह्मदेव की तपस्या से नारायण इतने प्रसन्न हो गए थे कि उनकी आंखों से करुणा जल निकल पडा । ब्रह्मा जी ने उस पवित्र जल को अपने हाथो में लेकर हिमालय के मानसरोवर पर स्थापित किया था। इस कारण से सरयू को नेत्रजा भी कहा जाता है । महाराज रघु की प्रार्थना पर महर्षि वशिष्ठ ने तपस्या करके ब्रह्मदेव को प्रसन्न किया । उन्होंने सरयू जी को ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को पृथ्वी पर अवतरित कराने का वरदान माँगा ।
महर्षि वशिष्ठ की कठोर तपस्या के बाद ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन सरयू पृथ्वी अवतरित हुई थी। इस कारण से इसका नाम वाशिष्ठी भी पड़ा। वाल्मीकी रामायण के अनुसार ब्रह्मदेव ने अपने मनोयोग से हिमालय के रमणीय क्षेत्र में एक सरोवर का निर्माण किया । जिस सरोवर का नाम मानस-सर (मानसरोवर ) पड़ा। सर से निकलने के कारण इसका नाम सरयू पड़ा । सरयू जी मानसरोवर की पुत्री है , बहुत से महात्मा सरयू जी को महर्षि वसिष्ठ जी की पुत्री भी मानते है परंतु यह बात अधिकतर मान्य नही है ।
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