बुधवार, 14 मार्च 2018


*शबरी की  भक्ति !!*

शबरी के पिता भीलों के राजा थे. शबरी जब विवाह योग्य हुई तो इनके पिता ने एक भील कुमार से इनका विवाह पक्का किया. विवाह के दिन निकट आये. सैकडों बकरे-भैंसे बलिदान के लिये इकट्ठे किये गये.
शबरी ने पूछा- ये सब जानवर क्यों इकट्ठे किये गये हैं ? उत्तर मिला- तुम्हारे विवाह के उपलक्ष्य में इन सबका बलिदान होगा.

भक्तिमती भोली बालिका सोचने लगी. यह कैसा विवाह जिसमें इतने प्राणियों का वध हो. इस विवाह से तो विवाह न करना ही अच्छा. ऐसा सोचकर वह रात्रि में उठकर जंगल में चली गयी और फिर लौटकर घर नहीं आयी.

शबरी जी पर गुरु कृपा - दण्डकारण्य में हजारों ऋषि-मुनि तपस्या करते थे, शबरी भीलनी जाति की थी, स्त्री थी, बालिका थी, अशिक्षिता थी. उसमें संसार की दृष्टि में भजन करने योग्य कोई गुण नहीं था. किन्तु उसके हृदय में प्रभु के लिये सच्ची चाह थी, जिसके होने से सभी गुण स्वत: ही आ जाते हैं. वे मुनि मतंग जी को अपना गुरु बनना चाहती थी पर उन्हें ये भी पता था कि भीलनी जाति कि होने पर वे उन्हें स्वीकार नहीं करेगे इसलिए वे गुरु सेवा में लग गई.

रात्रि में दो बजे उठती जिधर से ऋषि निकलते उस रास्ते को नदी तक साफ करती. कँकरीली जमीन में बालू बिछा आती. जंगल में जाकर लकडी काटकर हवन के लिए डाल आती. इन सब कामों को वह इतनी तत्परता से छिपकर करती कि कोई ऋषि देख न लें. यह कार्य वह वर्षो तक करती रही. अन्त में मतंग ऋषि ने उस पर कृपा की और ब्रह्मलोक जाते समय उससे कह गये कि मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ. भगवान् स्वयं आकर तेरी कुटी पर ही तुझे दर्शन देंगे !
                  साधना का पथ -

शबरी जी का इंतजार शुरू हो गया. सुबह उठते ही शबरी सोचती-प्रभु आज अवश्य ही पधारेंगे. यह सोचकर जल्दी-जल्दी दूर तक रास्ते को बुहार आती, पानी से छिडकाव करती. गोबर से जमीन लीपती. जंगल में जाकर मीठे-मीठे फलों को लाती, ताजे-ताजे पत्तों के दोने बनाकर रखती. ठंडा जल खूब साफ करके रखती और माला लेकर रास्ते पर बैठ जाती.

 एकटक निहारती रहती. तनिक सी आहट पाते ही उठ खडी होती. बिना खाये-पीये सूर्योदय से सूर्यास्त तक बैठी रहती. जब अँधेरा हो जाता तो उठती, सोचती आज प्रभु किसी मुनि के आश्रम पर रह गये होंगे, कल जरूर आ जायँगे. बस, कल फिर इसी तरह बैठती और न आने पर कल के लिये पक्का विचार करती, ताजे फल लाती. इस प्रकार उसने बारह वर्ष बिता दिये.
              “कब दर्शन देंगे राम परम हितकारी,
               कब दर्शन देगे राम दीन हितकारी,
             रास्ता देखत शबरी की उम्र गई सारी”

गुरु के वचन असत्य तो हो नहीं सकते. आज नहीं तो कल जरूर आवेंगे इसी विचार से वह निराश कभी नहीं हुई. भगवान् सीधे शबरी के आश्रम पर पहुँचे. उन्होंने अन्य ऋषियों के आश्रमों की ओर देखा भी नहीं. शबरी के आनन्द का क्या ठिकाना ? वह चरणों में लोट-पोट हो गयी. नेत्र के अश्रुओं से पैर धोये, हृदय के सिंहासन पर भगवान् को बिठाया, भक्ति के उद्रेक में वह अपने आपको भूल गयी. सुन्दर-सुन्दर फल खिलाये और पंखा लेकर बैठ गयी. फिर शबरी ने स्तुति की,

भगवान् ने नवधा भक्ति बतलायी, और शबरी को नवधा भक्ति से युक्त बतलाकर उसे निहाल किया. फिर शबरी जी अपने गुरु लोक को गई !


  राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
 08737866555/ 9453316276

मंगलवार, 13 मार्च 2018

आप सभी का दिन मंगलमय हो आप सभी को मेरा प्रेम भरा राधे राधे



राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 08737866555

रविवार, 11 मार्च 2018


श्रीमद् भागवतम् स्कंद 3 अध्याय 24 श्लोक संख्या 13 तात्पर्य

  जिस प्रकार मनुष्य शरीर से आत्मा को पृथक नहीं कर सकता उसी प्रकार शिष्य अपने जीवन से गुरु आज्ञा को दूर नहीं कर सकता। यदि शिष्य इस प्रकार से गुरु उपदेश का पालन करता है, तो वे अवश्य सिद्ध बनेगा ।उपनिषदों में इसकी पुष्टि हुई है- जो लोग श्री भगवान तथा गुरु में श्रद्धा रखते हैं उन्हें वैदिक शिक्षा स्वतः प्राप्त हो जाती है ।कोई भौतिक दृष्टि से भले ही अनपढ़ हो किंतु यदि उसे गुरु के साथ ही साथ पुरुषोत्तम भगवान पर उसकी श्रद्धा है ,तो उसके समक्ष शास्त्रों का ज्ञान तुरंत प्रकट हो जाता है।

  राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता
 प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज
         08737866555

गुरुवार, 8 मार्च 2018

राष्ट्रीय भागवत कथा प्रवक्ता प्रमोद कृष्ण शास्त्री जी महाराज 08737866555

शनिवार, 3 मार्च 2018

आज बिरज में होली रे रसिया आज बिरज में होली है
 इंतज़ार में सखी मैं बैठी हूँ 
मेरे शाम पिया कब आएंगे
मन रंगा है उनके प्रेम में
होरी पे तन भी रंग जाएंगे 

चहूँ ओर में शोर मचा है
गवाल बाल सब रंगे खड़े हैं
मेरे तन पर इक छींट डाल दो
तेरी राह में हम भी पड़े हैं

भौर भई तो जाग उठी मैं
द्वार की ओर भाग उठी मैं
रंग गुलाल चहूँ और पड़ा है
मेरा दिल अकेला खड़ा है

काश कहीं से तुम आ जाओ
चुपके से मेरी आँख दबाओ 
पहचान लूँ तुमको क्षण में
राज दबाए रखूं यह मन मे

कौन कौन की रट लगाऊं
मन मे हरि हरि जप जाऊं
जिस पल तुम यह जान गए
मैने पहचान लिया मान गए

आंख छोड़ परे हो जाओगे 
दूर से मुझ पर मुस्काओगे
झूठ जो तेरे समीप लाता है
सच से भी सच्चा कहलाता है

नयन मुंदे हैं नासिका खुली है
चंदन महक सब ओर घुली है
कटि बंधी बांसुरी कटि पहचाने
कंगन के नूपुर मोको लगे बताने 

सांवरे की बलिष्ठ बुजा का जोर
पहचाने मेरे मन का चोर
अनियंत्रित से श्वास बता रहे 
दौड़ कर तुम कहीं से आ रहे 

तपते तेज़ बिखरे से श्वास
छू रहे कपोल बन कर आस 
हर बिखरी श्वास बहकाये रही है
तन मन को महकाये रही है

ऐसे अद्भुत क्षण को कैसे खो दूं
क्यूं ना कुछ पल बेसुध हो लूँ 

मैं बेसुध भी सुध में कहलाऊँ
छोड़ छोड़ दो कहती जाऊँ
छुड़वाने का जो प्रयास करूं 
ओर जकड़ लोगे आस करूं

कर से टटोलूँ तुम्हारा चेहरा
हाथ में आये मोरपंख सेहरा
छोड़ मैं आगे बढ़ जाऊं 
पगड़ी ढीली कुछ कर जाऊं

कान का कुंडल छूने के बहाने
कान खींच तोहे मज़ा चखाऊँ
कर टकराये वैजंती माला से
कोमल पुष्पों को और दबाऊं

फिर कोमल कपोल तुम्हारे छू
नयनों पे कर में ले जाऊं 
मृग नयनों की लंबी पलकें छू
आनन्द सागर के गोते खाऊं

नासिका जो मुझे महकाये रही 
झूलता उसका मोती छू लूँ 
कमल पाँखुड़ी से अधखुले अधर
उंगलियों से छू ही रस पी लूँ

मदिरा से भरे दो कलशों से
अधरों को छू 
हाय मैं बहक गई
श्याम श्याम मेरे श्याम श्याम 
मदहोश पगली 
है मैं कह गई 

पहचान लिया 
पहचान लिया
गोपालों ने शोर मचाया
खींच ले गए साजन को
बेसुध तन रोक ना पाया

ठगी रह गयी 
लुटी पिट्टी सी
जड़ हो गई
मूरत मिट्टी की

उस पल को सखी कोसूं
बेसुधी में पी का नाम लिया
जिस नाम को श्वास श्वास जपूँ
उस नाम ने बंटाधार किया 

रंगने को आतुर मन मेरा
रंगने से चूक गया तन मेरा
दर्पण से दर्द कहने गई
सूरत देख दंग रह गई

लाल गुलाबी केसरी पीला
हरा जामुनी सन्तरी नीला
इंद्रधनुष तन पे उतर आया
श्याम पिया मोहे खूब छकाया


किसी लोक की चाह नही 
बस नयनों में बसा लो पिया
प्रभु ,प्रभु  मोसे बोलो ना जाए
जिया कहे बस पिया पिया

होरी के रसिया पिया प्रीतम की जय हो ।।।

शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

भगवान कितने दयालु हैं कृष्ण अर्जुन संवाद सुंदर प्रसंग एक बार जरूर पढ़ें

भगवान रक्षा करते है पर कोई उनके श्री चरणों में भरोसा तो रखे।
चमत्कार उसी को दिखाई देंगे जिसका भरोसा बड़ा पक्का होगा, जिसकी आस्था में कमी नहीं होगी उसको चमत्कार दिखाई देंगे।

आपने शायद कभी सुना होगा यह प्रसंग

जब महाभारत का युद्ध प्रारम्भ हो रहा था, इधर से पांड़वो की सेना तैयार थी उधर से कौरवो की सेना तैयार थी।
दोनों सेनाएं आपस में टकराने के लिए बिल्कुल तैयार थी तो उस समय युद्ध क्षेत्र बीच में एक चिड़िया के अंडे पड़े हुए थे।
उस चिड़िया ने अभी-अभी वो अंडे दिए थे और उसकी आँखों में आंसू थे, वो रो रही थी कि दोनों तरफ से सेनाएं आपस मे टकराएगी और मेरे ये बच्चे तो संसार में आने से पहले ही खत्म हो जाएंगे। उस चिडिया ने इस दुख की घडी मे भगवान से विनती की "हे ! प्रभु जिसकी कोई नहीं सुनता उसकी तो आप सुनते हो।"

"जब तुझसे ना सुलझे तेरे उलझे हुए धंधे
तो मेरे बांके बिहारी पे छोड़ दे बन्दे"
वो ही तेरी मुश्किल आसान करेंगे
और जो तू ना कर सका वो मेरे भगवान करेंगे।

उस छोटी सी चिड़िया ने भगवान से प्रार्थना की प्रभु अब तो आप ही कुछ कर सकते है और उसी समय युद्ध प्रारम्भ हुआ। दोनों सेनाएं परस्पर टकराई, महा भयंकर युद्ध हुआ। बडे-बडे महारथी युद्ध मे मारे गये। चारो तरफ सैनिको के लाशो के ढेर थे। महाभारत युद्ध के उपरांत अर्जुन के रथ को लेकर श्रीकृष्ण कुरुक्षेत्र की भूमि से निकलकर जा रहे है, पांडव युद्ध जीत चुके है।
भगवान अर्जुन के रथ को लेकर जा रहे है तो नीचे भूमी पर एक रथ का घंटा पड़ा हुआ है। भगवान के हाथ में घोड़ो को हांकने वाला चाबुक है। भगवान ने उस पड़े हुए घंटे पे‌ जोर से चाबुक को मारा तो वो घंटा पलट गया और जैसे ही वो घंटा पलटा तो उसके अंदर से चिड़िया के नन्हे बच्चे फुदकते हुए बाहर निकले और उड़कर वहां से चले गए। यह सत्य घटना है, महाभारत में यह प्रसंग आया है। यह देखकर अर्जुन को बड़ा आश्चर्य हुआ और अर्जुन भगवान से बोले "केशव ! यह मैं क्या देख रहा हूँ? इतना भीषण युद्ध जो ना पहले कभी हुआ और ना आगे शायद होगा। ऐसा ये भीषण महाभारत युद्ध जिसमे भीष्म पितामह, कर्ण और गुरु द्रौण, जैसे योद्धा नहीं बचे। जिस युद्ध में दुर्योधन जैसे बलशाली नहीं बचे। ऐसे भीषण संग्राम में इन चिड़िया के बच्चों की रक्षा किसने की ?"
तो भगवान मुस्कुराने लगे और बोले "अर्जुन ! अभी भी नहीं समझा ? अरे पगले जिसने तुझे बचाया है, उसने ही तो इनको बचाया है।

मधुर व्यवहार सुंदर प्रसंग एक बार जरुर पढ़ें


एक राजा था। उसने एक सपना देखा। सपने में उससे एक परोपकारी साधु कह रहे थे -- बेटा! कल रात को तुम्हें एक विषैला सांप काटेगा और उसके काटने से तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी। वह सर्प अमुक पेड़ की जड़ में रहता है। वह तुमसे पूर्व जन्म की शत्रुता का बदला लेना चाहता है।
सुबह हुई। राजा सोकर उठा। और सपने की बात अपनी आत्मरक्षा के लिए क्या उपाय करना चाहिए? इसे लेकर विचार करने लगा।

सोचते- सोचते राजा इस निर्णय पर पहुंचा कि मधुर व्यवहार से बढ़कर शत्रु को जीतने वाला और कोई हथियार इस पृथ्वी पर नहीं है। उसने सर्प के साथ मधुर व्यवहार करके उसका मन बदल देने का निश्चय किया।

शाम होते ही राजा ने उस पेड़ की जड़ से लेकर अपनी शय्या तक फूलों का बिछौना बिछवा दिया, सुगन्धित जलों का छिड़काव करवाया, मीठे दूध के कटोरे जगह जगह रखवा दिये और सेवकों से कह दिया कि रात को जब सर्प निकले तो कोई उसे किसी प्रकार कष्ट पहुंचाने की कोशिश न करें।

रात को सांप अपनी बांबी में से बाहर निकला और राजा के महल की तरफ चल दिया। वह जैसे आगे बढ़ता गया, अपने लिए की गई स्वागत व्यवस्था को देख देखकर आनन्दित होता गया। कोमल बिछौने पर लेटता हुआ मनभावनी सुगन्ध का रसास्वादन करता हुआ, जगह-जगह पर मीठा दूध पीता हुआ आगे बढ़ता था।

इस तरह क्रोध के स्थान पर सन्तोष और प्रसन्नता के भाव उसमें बढ़ने लगे। जैसे-जैसे वह आगे चलता गया, वैसे ही वैसे उसका क्रोध कम होता गया। राजमहल में जब वह प्रवेश करने लगा तो देखा कि प्रहरी और द्वारपाल सशस्त्र खड़े हैं, परन्तु उसे जरा भी हानि पहुंचाने की चेष्टा नहीं करते।

यह असाधारण सी लगने वाले दृश्य देखकर सांप के मन में स्नेह उमड़ आया। सद्व्यवहार, नम्रता, मधुरता के जादू ने उसे मंत्रमुग्ध कर लिया था। कहां वह राजा को काटने चला था, परन्तु अब उसके लिए अपना कार्य असंभव हो गया। हानि पहुंचाने के लिए आने वाले शत्रु के साथ जिसका ऐसा मधुर व्यवहार है, उस धर्मात्मा राजा को काटूं तो किस प्रकार काटूं? यह प्रश्न के चलते वह दुविधा में पड़ गया।

राजा के पलंग तक जाने तक सांप का निश्चय पूरी तरह से बदल गया। उधर समय से कुछ देर बाद सांप राजा के शयन कक्ष में पहुंचा। सांप ने राजा से कहा, राजन! मैं तुम्हें काटकर अपने पूर्व जन्म का बदला चुकाने आया था, परन्तु तुम्हारे सौजन्य और सद्व्यवहार ने मुझे परास्त कर दिया।

अब मैं तुम्हारा शत्रु नहीं मित्र हूं। मित्रता के उपहार स्वरूप अपनी बहुमूल्य मणि मैं तुम्हें दे रहा हूं। लो इसे अपने पास रखो। इतना कहकर और मणि राजा के सामने रखकर सांप चला गया।

यह केवल कहानी नहीं जीवन की सच्चाई है। अच्छा व्यवहार कठिन से कठिन कार्यों को सरल बनाने का माद्दा रखता है। यदि व्यक्ति व्यवहार कुशल है तो वो सब कुछ पा सकता है जो पाने की वो हार्दिक इच्छा रखता है।

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

प्रभु कहते हैंThe lord says

        अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का
             तुरन्त जबाव दे देता हूँ
           तो मैं तुम्हारे विश्वास को
            और पक्का करता हूँ ।
                    💐💐
               अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना 
          का तुरन्त जबाव नहीं देता हूँ
               तो मैं तुम्हारे धैर्य की
                   परीक्षा लेता हूँ...
                      🌷🌷
           अगर मैं तुम्हारी प्रार्थना का
             बिल्कुल भी जवाब नही
                      देता हूँ तो.....
           मैने तुम्हारे लिये कुछ और
                 ही अच्छा सोच 
                      रखा है |