जय जय राम जी
*" उपासना में बाधाएं एवं समाधान "*
1. परमात्मा का सतत् सिमरण बना रहे ।बार बार नाम का उच्चारण कीजिएगा ।
2. मन में तड़प पैदा हो कि राम के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए ।
3. सब में राम है और सब राम हैं ।
यह करना बहुत कठिन है ।
4. संसार में जो भी घट रहा है , राम जी की इच्छा से घट रहा है ।यह बात पक्की होनी चाहिए ।
मन से , वाणी से , शरीर से परम शुचिता होनी चाहिए, परम पवित्रता होनी चाहिए , जीवन में । तब राम जी झोली में बैठते हैं , तब राम जी झोली में बिठाते हैं ।
महाराज जी समझाते हैं कि कुछ एक बाधाएँ हैं जो इन बड़ी बड़ी बातों को हमारे जीवन में उतरने नहीं देती ।।
1. गुरु में अविश्वास - जब तक हमारी कामना पूरी हो रही है, तब तक विश्वास, जब हमारे कहने के अनुसार नहीं हुआ तब अविश्वास ।
2. ईर्ष्याग्नि - ईर्ष्या की अग्नि । घर -घर की बीमारी है । सामान्य व्यक्ति की, वैरागी की ,पापी की , संतों महात्माओं की , गुरुओं की, कोई भी इस रोग से मुक्त नहीं है ।
*एक साधक ऐसा होना चाहिए, जो दूसरे भक्त को देखकर उसकी प्रशंसा ही प्रशंसा करे , उसके ऊपर प्रसन्न हो* ।
वाह! परमात्मा तेरा कोई और भक्त भी है मेरे अतिरिक्त ।
ईर्ष्याग्नि , हमें ही अंदर ही अंदर जलाती है और हमें पतन की तरफ ले जाती है ।
3. क्रोध की अग्नि - जो हमारे भीतर की कमाई को सुखा देती है । क्रोध हमारे भीतर शांति के स्त्रोत को बहने में रुकावट डालती है ।
क्रोध आने के अनेक कारण महाराज जी ने वर्णन किए हैं - हमारे अंदर यह मान्यता आ जाती है कि संसार हमारे अनुसार चले ,भगवान हमारे अनुसार चलें । जब यह अपेक्षा पूरी नहीं होती तो क्रोध का विस्फोट होता है ।
कामना ही क्रोध है , भगवान श्रीकृष्ण भी यही समझाते हैं ।
यहाँ अशान्ति होती है, वहाँ शान्ति नहीं होती , इसका अर्थ है वहाँ परमात्मा नहीं होते ।
जब हम परमात्मा से मिलन चाहते हैं तो इन अवगुणों को भगवान् के श्री चरणों में समर्पित करना होगा ।।
जय जय श्री राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
*" उपासना में बाधाएं एवं समाधान "*
1. परमात्मा का सतत् सिमरण बना रहे ।बार बार नाम का उच्चारण कीजिएगा ।
2. मन में तड़प पैदा हो कि राम के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए ।
3. सब में राम है और सब राम हैं ।
यह करना बहुत कठिन है ।
4. संसार में जो भी घट रहा है , राम जी की इच्छा से घट रहा है ।यह बात पक्की होनी चाहिए ।
मन से , वाणी से , शरीर से परम शुचिता होनी चाहिए, परम पवित्रता होनी चाहिए , जीवन में । तब राम जी झोली में बैठते हैं , तब राम जी झोली में बिठाते हैं ।
महाराज जी समझाते हैं कि कुछ एक बाधाएँ हैं जो इन बड़ी बड़ी बातों को हमारे जीवन में उतरने नहीं देती ।।
1. गुरु में अविश्वास - जब तक हमारी कामना पूरी हो रही है, तब तक विश्वास, जब हमारे कहने के अनुसार नहीं हुआ तब अविश्वास ।
2. ईर्ष्याग्नि - ईर्ष्या की अग्नि । घर -घर की बीमारी है । सामान्य व्यक्ति की, वैरागी की ,पापी की , संतों महात्माओं की , गुरुओं की, कोई भी इस रोग से मुक्त नहीं है ।
*एक साधक ऐसा होना चाहिए, जो दूसरे भक्त को देखकर उसकी प्रशंसा ही प्रशंसा करे , उसके ऊपर प्रसन्न हो* ।
वाह! परमात्मा तेरा कोई और भक्त भी है मेरे अतिरिक्त ।
ईर्ष्याग्नि , हमें ही अंदर ही अंदर जलाती है और हमें पतन की तरफ ले जाती है ।
3. क्रोध की अग्नि - जो हमारे भीतर की कमाई को सुखा देती है । क्रोध हमारे भीतर शांति के स्त्रोत को बहने में रुकावट डालती है ।
क्रोध आने के अनेक कारण महाराज जी ने वर्णन किए हैं - हमारे अंदर यह मान्यता आ जाती है कि संसार हमारे अनुसार चले ,भगवान हमारे अनुसार चलें । जब यह अपेक्षा पूरी नहीं होती तो क्रोध का विस्फोट होता है ।
कामना ही क्रोध है , भगवान श्रीकृष्ण भी यही समझाते हैं ।
यहाँ अशान्ति होती है, वहाँ शान्ति नहीं होती , इसका अर्थ है वहाँ परमात्मा नहीं होते ।
जब हम परमात्मा से मिलन चाहते हैं तो इन अवगुणों को भगवान् के श्री चरणों में समर्पित करना होगा ।।
जय जय श्री राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।
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