शनिवार, 6 जनवरी 2018

जय जय राम जी

 *" उपासना में बाधाएं एवं समाधान "*

1. परमात्मा का सतत् सिमरण बना रहे ।बार बार नाम का  उच्चारण कीजिएगा ।

2. मन में तड़प पैदा हो कि राम के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए ।

3. सब में राम है और सब राम हैं ।
   यह करना बहुत कठिन है ।

4. संसार में जो भी घट रहा है , राम जी की इच्छा से घट रहा है ।यह बात पक्की होनी चाहिए ।

मन से ,  वाणी से ,  शरीर से परम शुचिता होनी चाहिए, परम पवित्रता होनी चाहिए  , जीवन में । तब राम जी झोली में बैठते हैं , तब राम जी झोली में बिठाते हैं ।

महाराज जी समझाते हैं कि  कुछ एक बाधाएँ हैं जो  इन बड़ी बड़ी बातों को हमारे जीवन में उतरने नहीं देती ।।

1. गुरु में अविश्वास -  जब तक हमारी कामना पूरी हो रही है, तब तक विश्वास, जब  हमारे  कहने के अनुसार नहीं हुआ तब अविश्वास ।

2. ईर्ष्याग्नि -  ईर्ष्या की अग्नि । घर -घर की  बीमारी है । सामान्य व्यक्ति की, वैरागी की ,पापी की , संतों महात्माओं की , गुरुओं की,  कोई भी  इस रोग से  मुक्त नहीं है ।
      *एक साधक  ऐसा होना चाहिए, जो दूसरे भक्त को देखकर  उसकी प्रशंसा ही प्रशंसा करे , उसके ऊपर प्रसन्न हो* ।
वाह! परमात्मा तेरा कोई और भक्त भी है मेरे अतिरिक्त ।

ईर्ष्याग्नि  ,  हमें ही अंदर ही अंदर  जलाती है और हमें पतन की तरफ ले जाती है ।

3. क्रोध की अग्नि - जो हमारे भीतर की कमाई को सुखा देती है । क्रोध  हमारे भीतर शांति के स्त्रोत  को बहने में रुकावट  डालती है ।
क्रोध आने के  अनेक कारण महाराज जी ने वर्णन किए हैं - हमारे अंदर यह मान्यता आ जाती है कि संसार हमारे  अनुसार चले ,भगवान हमारे  अनुसार  चलें । जब यह अपेक्षा पूरी नहीं होती तो क्रोध का विस्फोट होता है ।
कामना ही क्रोध है , भगवान श्रीकृष्ण भी यही  समझाते हैं ।

यहाँ अशान्ति होती है, वहाँ  शान्ति नहीं होती , इसका अर्थ है वहाँ परमात्मा  नहीं होते ।

 जब हम परमात्मा से मिलन चाहते हैं तो  इन अवगुणों को  भगवान् के श्री चरणों में समर्पित करना होगा ।।

जय जय श्री राम ।
राम राम राम राम राम राम राम ।।

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